वर्षा ऋतु में आहार विहार कैसा हो Diet in the rainy season
वर्षा ऋतु में आहार विहार कैसा हो Diet in the rainy season
जब ग्रीष्म ऋतु की भीषण तपन के बाद आकाश से बरसात की रिमझिम फुहारें पृथ्वी पर पड़ती हैं, तो मन प्रफुल्लित हो जाता है और मन में एक नई ताजगी आने लगती है। पेड़-पौधों में एक नई चेतना का संचार होनेलगता है। पेड़ों में नवीन पत्ते, धरती में हरी-हरी घास, तथा चारों ओर हरियाली दिखने लगती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं, सभी के मन में उल्लास छाने लगता है।
वर्षा ऋतु का आगमन जितना सुहावना और मनमोहक होता है उतना ही मानव जीवन के लिए सावधानी का होता है। मौसम बदलने का असर शरीर व स्वास्थ्य पर दिखता है। गर्मी में शरीर से पसीना निकलने व रस धातु के शोषण होने से भूख कम लगती है तथा वर्षा की फुहार जब जमीन पर पड़ती है तो पृथ्वी से उमस निकलती है। जल अम्लीय हो जाता है, जठराग्रि कमजोर हो जाती है और भोजन पचने में देर लगती है। इसलिए वर्षा ऋतु में अपने आहार-विहार में विशेष सावधानी की जरुरत होती है।
हमारा शरीर बात, पित्त, कफ त्रिदोष सिद्धान्त के अनुसार कार्य करता है, वर्षा काल में बात (वायु)कुपित रहता है। इसलिए वर्षा ऋतु में वायु कुपित करने वाले आहार से बचना चाहिए, बेवक्त और बासी खाने से बचना चाहिए। जिससे, अपच, कब्ज और गैस प्रकोप से बचा जा सके। वर्षा ऋतु में जल कई कारणों से दूषित हो जाता है और उस जल का सेवन कई संक्रमित बीमारियों को जन्म दे सकता है, इसलिए वर्षाकाल में जल को उबालकर या फिल्टर कर ही सेवन करना चाहिए। वर्षा के जल से भीगने पर जल्दी ही तौलिये से पानी पोंछकर सूखे कपड़े पहन लेने चाहिए। वर्षा ऋतु में अधिक हरे पत्तेवाली सब्जी, भाजी का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि पत्ते वाली सब्जियों में अनेंक छोटे-छोटे कीड़े व उनके अंडे हो जाते हैं। उस परिस्थिति में पत्ते वाले साग के सेवन के साथ अनेकों कीड़े व वैक्टीरिया हमारे पेट में जाकर अनेंक रोगों को जन्म देते हैं। साथ ही अण्डा व मांस का सेवन तो सदैव के लिए बन्द कर देना चाहिए। हम जिस पशु-पक्षी का मांस या अण्डा खाते हैं उसके शरीर में जिस तरह के रोग पहले से होंगे उसके मांस के साथ हमारे शरीर में आ जायेंगे और अनेकों रोगों का आक्रमण हमारे शरीर को बरबाद कर देगा, इसलिए हमें भूलकर भी किसी भी पशु-पक्षी या मछली के मांस-अण्डे का सेवन नहीं करना चाहिए।
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