Header Ads

धूप-पानी चिकित्सा

Dhup Pani Chikitsa, colour therapy, benefits of color

धूप-पानी चिकित्सा

हमारा शरीर पंचतत्त्वों से निर्मित है। इनमें किसी एक तत्त्व की कमी से हमारा शरीर अनेक रोगों से घिर जाता है। हमारे शरीर के निर्माण एवं संचालन में ये पंचतत्त्व अति आवश्यक हैं। ये तत्त्व हैः आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी।
इन तत्त्वों की अपनी एक विशेषता है और इनका एक विज्ञान हैं। प्रत्येक तत्त्व एक-दूसरे का सहायक है। हम यहां पर आपको दो तत्त्व धूप, अर्थात् अग्नि एवं जल तत्त्व के योग से शरीर चिकित्सा की जानकारी दे रहे हैं।
सूर्य की किरणों में पानी को शोधित करके पीने से अनेक रोग समाप्त होते हैं। सुबह को सूर्य की किरणें हमारे शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होती हैं। विटामिन डी की पूर्ति सूर्य की किरणों से होती है। सूर्योदय के समय धूपस्नान विटामिन डी की पूर्ति करता है। सूर्य की किरणें अनेक तरह के नुकसानदायक जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक हैं।

सूर्यकिरण-जल चिकित्सा

सूर्य किरण चिकित्सा हमारे लिए अनमोल है। बगैर कुछ खर्च किये यह हमारे शरीरगत अनेक रोगों में लाभदायक है। सूर्य किरणों में सप्तरंग समाहित रहते हैं। इन्हीं रंगों को अलग-अलग रूप से पानी में समाहित करके हम रोगों को दूर करते हैं। यह सूर्य किरण चिकित्सा पूर्व में बहुत ही प्रभावक थी, परन्तु धीरे-धीरे इसके जानकार कम होते गये और इसके लाभ से हम वंचित होते गये, परन्तु अब पुनः इसके लाभ लेने का समय आ गया है।
हमारे ऋषि सूर्य की किरणों में छुपे रंगों को विशेष विधि से अलग करके किसी एक रंगीय किरण से किसी भी वस्तु के अणुओं में परिवर्तित करने की कला जानते थे, जैसे गुलाब के फूल पर सूर्य किरणों को डालकर और उसके अणुओं में परिवर्तन करके उसे कमल के फूल में परिवर्तित कर देते थे। यह एक पुरातन विज्ञान था, जिसे हम सूर्य विज्ञान के नाम से जानते हैं। इसी सूर्य विज्ञान का चमत्कार है कि हम सूर्य किरणों के रंगों से पानी को शोधित कर शरीर की चिकित्सा करते है। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश से सम्पूर्ण पृथ्वी प्रकाशित होती है, उसी प्रकार सूर्य किरणों से किसी भी एक पदार्थ को दूसरे पदार्थ में परिवर्तित करने की क्रिया तथा किसी भी रोग के जीवाणुओं को नष्ट करके शरीर में स्थापित त्रिदोषों को सन्तुलित करने की क्रिया सम्भव है।

पानी को सूर्य किरणों से सिद्ध करें

इस कार्य को बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित कुछ नियमों को जानने की आवश्यकता हैः
1. कुछ कांच की बोतलें लाल, नीली, हरी, पीली, सफेद कलर की इकट्ठी करें और उन्हें अच्छी तरह से गरम पानी में डिटर्जेंट डालकर अन्दर बाहर से साफ करें। साफ होने के पश्चात् ध्यान से देखें कि उस बोतल में किसी तरह की दरार या धब्बा तो नहीं है और अगर ऐसी कोई बोतल हो, तो उसे बदल दें।
2. किसी कारणवश अगर ऐसे कलर की बोतलें न मिलें, तो ट्रांसपेरेन्ट बोतलें ले लें और उनके बाहर प्लास्टिक की कलर पन्नी चिपका दें, जो आपको अलग-अलग कलर की जनरल स्टोर्स में मिल जाती है या इलेक्ट्रिकल्स की दुकान में भी ये पन्नियां मिलती हैं। ये लोग ट्यूबलाइट को अलग-अलग कलर में जलाने के लिए अलग-अलग कलर की पन्नी उनपर लपेटकर जलाते हैं।
3. कुछ अन्य कलर की बोतल बनाने के लिए दो तरह की पन्नियां चढ़ाकर अलग कलर बना सकते हैं, जैसे नारंगी कलर की बोतल बनाने के लिए लाल और पीली पन्नी को आपस में मिलाकर बोतल पर चिपकायें तो नारंगी कलर की बोतल तैयार हो जायेगी। बैगनी रंग के लिए नीली तथा लाल पन्नी को मिलाकर बोतल पर चढ़ायें। गहरा हरा कलर के लिए नीली तथा पीली पन्नी को चढ़ाये। इसी प्रकार किन्हीं दो कलर के कॉम्बीनेशन से अलग-अलग कलर बनते हैं।
4.एक लकड़ी की पटिया एक फुट चौड़ी और दो फुट लम्बी लें। ध्यान रहे आप जिस कलर की बोतल उस पर रखें, तो उसी कलर का कागज उस पटिया पर चिपका दें।
5. बोतल में सादा एवं स्वच्छ पानी भरें। ध्यान रहे कि बोतल में पानी 80 प्रतिशत ही भरें शेष 20 प्रतिशत बोतल खाली रखें।
6. जिस रंग का जल सिद्ध करना हो, उस रंग की बोतल में पानी भरकर धूप में पटिया के ऊपर रख दें। कुछ घण्टे बाद बोतल के ऊपरी हिस्से में जो खाली जगह है, वहां वाष्प की बूंदें दिखने लगेंगी। तब समझ लें कि बोतल का पानी सिद्ध हो गया है और उस पानी को धूप से हटा लें।
7. सूर्य किरणों से सिद्ध जल की खुराक 10 ग्राम से 25 ग्राम तक है। मरीज के बलाबल को देखकर इस सिद्ध जल की खुराक का निर्धारण करें।
8. ध्यान रहे दवा, पीने में जल्दबाजी न करें। धैर्य के साथ पीने से लाभ होता है। ये दवायें धीरे-धीरे लाभ करती हैं। इस जल में समाहित सूर्य किरणों की शक्ति से आपके रोगों के निदान में सहायता मिलती है।
9. सूर्य किरणों से सिद्ध जल को सुबह खाली पेट, दोपहर, शाम एवं रात्रि में सोते समय लेना चाहिए। ध्यान रहे जब तक इस सिद्ध जल का सेवन करें, तो पूर्णतः नशा का सेवन बन्द करें, मांसाहार का त्याग करें एवं ज्यादा तली एवं गरिष्ठ पदार्थों का सेवन त्याग दें, जिससे पेट पूर्ण रूप से साफ रहे और दवा आपको पूर्ण लाभ दे सके।
10. यह सिद्ध किया हुआ जल एक सप्ताह तक प्रभावी रहता है। इसके बाद धीरे-धीरे इसका प्रभाव घटने लगता है। अतः प्रति सप्ताह नया जल पुनः सिद्ध करें, तो वह ज्यादा प्रभावी रहेगा और आपको आशतीत लाभ प्रदान करेगा और आपके रोग जल्दी ही दूर हो सकेंगे।

धूप-पानी चिकित्सा से रोगोपचार

बच्चों के दांत निकलना-

छोटे बच्चों के दांत निकलते समय उन्हें पर्याप्त दर्द झेलना पड़ता है। बच्चा सर पटकता है और रोता है। उसे हरे-पीले दस्त होते है और वह उल्टी करता है। इससे बच्चा सुस्त एवं कमजोर हो जाता है। ऐसे में बच्चे को नीली बोतल का पानी पिलाना चाहिए। नीली बोतल में दो तिहाई पानी भरकर एक चौथाई खाली रखें। जब धूप पर्याप्त मात्रा में हो, तो एक लकड़ी पटिये पर बोतल रखकर धूप में रखें। कुछ घण्टे में बोतल के ऊपरी खाली स्थान में वाष्प की बूंदें दिखने लगेंगी। तब उसे धूप से उठा लें और ठंडा होने पर उस बोतल का पानी आधा चम्मच दिन में 4 बार बच्चे को पिलाये। साथ ही उसकी माँ को भी 30 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन या चार बार पिलायें। इससे बच्चे के दांत आसानी से निकल आते है, पीड़ा नहीं होती है और हरे-पीले दस्त भी सही होते है।

दांत दर्द-

नारंगी कलर की शीशी में सिद्ध किया हुआ जल लें और उसमें थोड़ा सा कालानमक मिलाकर गरारे करें। इसके साथ ही 20 ग्राम इस जल को मुंह में भरकर पूरे मुंह में घुमायें तथा 10 मिनट बाद इस पानी को थूक दें। दिन में 5-6 बार यह क्रिया दोहरायें। इससे दांतो का दर्द सही होता है।

दांत हिलना-

पीली बोतल से सिद्ध किये हुए जल में फूल फिटकरी डालकर कुल्ला करें। मुंह में यह पानी डालकर 10 मिनट पूरे मुंह में घुमायें और थूक दें। यह क्रिया दिन में 6 बार दोहरायें। लगातार 30 दिन ऐसा करने से दांतों का हिलना सही होता है।

दांतों से खून आना-

नीली शीशी से सिद्ध किये जल में काले नमक की डली को आग में गर्भ करके बुझालें और उस जल से दिन में 8 बार कुल्ला करें। एक बार मुंह में जल डालकर कम से कम 10 मिनट तक वह पानी मुंह में रखें और इसके बाद थूक दें। इस प्रकार कुछ दिनों के प्रयोग से दांतों से खून आना बन्द हो जाता है।

दांत में पानी लगना-

नीली शीशी के सिद्ध किये जल में कालानमक और फूल फिटकरी डालकर दिन में 6 बार कुल्ला करें। कुल्ला करते समय पानी को मुंह में 10 मिनट तक रखकर पूरे मुंह में घुमायें। इसके बाद थूक दें। लगातार 30 दिन तक ऐसा करने से दांतों में पानी का लगना सही होता है और दांत स्वस्थ हो जाते है।
नोट- खाना खाने के बाद दांतों को पानी से अच्छी तरह से धोना चाहिए। खाना खाते समय दांतों में अन्न के कण फंस जाते हैं, जो बाद में दांतों में सड़न पैदा करते हैं। अतः खाने के बाद दांतों को अच्छी तरह से पानी से साफ करना चाहिए। अगर हो सके, तो नीम या बबूल की दातून को चबाकर उससे दांतों को साफ करना चाहिए। इससे दांतों में कीड़ा लगना, दांत हिलना, दांतदर्द, पानी लगना आदि अनेक रोग सही होते हैं।

जोड़ों में सूजन-

जोड़ों की सूजन प्राकृतिक तरीके से भी ठीक की जा सकती है। बन्द बाथरूम में बैठकर सूजन वाले स्थान पर गर्म-गर्म पानी धीरे-धीरे डालें। ध्यान रहे कि पानी ज्यादा गर्म न हो, ताकि त्वचा जल न जाये। यह क्रिया लगभग 10 से 15 मिनट तक लगातार करें। इसके पश्चात् तुरन्त ही ठंडे पानी की धार डालें। यह प्रक्रिया भी 10 से 15 मिनट तक करें। लगातार 15 दिन तक करने से यह परेशानी दूर होती है। सूजन पर गर्म पानी की धार डालने से वहां जमा खून पिघलकर बिखर जाता है और ठंडे पानी की धार डालने से वहां की सूजन पिचक जाती है। इसके साथ ही लाल एवं नारंगी रंग की बोतल में सिद्ध किया हुआ पानी दिन में चार बार 30 ग्राम की मात्रा में पियें।

रूखी त्वचा-

किसी-किसी व्यक्ति की त्वचा रूखी होती है और वह बदसूरत सी लगती है। इसे खुजाने से सफेद धारी पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में हरी बोतल में सिद्ध किया हुआ पानी सुबह एवं शाम को 30 ग्राम की मात्रा में पियें। साथ ही हरी बोतल में सिद्ध किया हुआ तिल का तेल पूरे शरीर में मालिश करें। इससे फफूंद की तरह झड़ने वाली त्वचा भी सही होती है। इससे अंग-प्रत्यंग चिकने और मुलायम हो जाते हैं। ध्यान रहे धूप में सिद्ध किया हुआ तेल छाया में ठंडा करने के बाद ही उपयोग करें।

दूध उलटना-

यह तकलीफ अधिकतर छोटे बच्चों को होती है। उन्हें दिन में कई बार दूध पीने के बाद उल्टी होती रहती है। इस कारण वे अक्सर भूखे रहते है और रोते भी अधिक हैं। ऐसी स्थिति में नीली बोतल में सिद्ध किया हुआ पानी एक-एक चम्मच दो-दो घण्टे में पिलाते रहें। माँ की कृपा से एक या दो दिन में बच्चा दूध पलटना बन्द कर देगा।

बालतोड़-

बालतोड़ से आप सभी परिचित हैं। शरीर के जिस हिस्से में बालतोड़ हो जाता है, उसमें सूजन आ जाती है, पक जाता है, दर्द बढ़ जाता है और काम काज करने में भारी परेशानी होने लगती है। ऐसी स्थिति में आसमानी शीशी में सिद्ध किये हुए तेल को पीपल के पत्ते में चुपड़कर बालतोड़ वाले स्थान पर बांधे। यह पत्ता दिन में तीन बार बदलें। कुछ ही दिन में वहां से मवाद निकलकर सूजन समाप्त हो जायेगी तथा दर्द भी सही हो जायेगा।

बाल टूटना-

अगर आपके सर के बाल तेजी से गिर रहे हों, तो समझ लें कि आपके बालों की जडें कमजोर हो गई हैं और उन्हें पोषण की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में आसमानी कलर की बोतल में तिल का तेल एवं कपूर को डालकर सूर्य की किरणों में सिद्ध करें। तत्पश्चात् प्रतिदिन सुबह एवं रात्रि को सोते समय बालों की जड़ों में इस तेल को हल्के हाथों से लगायें। एक माह में बालों की जडें मजबूत बनने लगेंगी और बालों का झड़ना रुक जाएगा।

बाल पकना-

बुढ़ापे में बाल सफेद हों तो कोई बात नहीं, परन्तु जब बच्चों के ही बाल सफेद होने लगते हैं, तो परेशानी होती है। ऐसी स्थिति में आसमानी शीशी में सिद्ध किया हुआ तेल हल्के हाथों से बालों की जड़ों में लगायें। ध्यान रहे इसे लम्बे समय तक लगाना चाहिए। इससे धीरे-धीरे बालों का पकना कम होता है।

सिर दर्द-

किसी-किसी व्यक्ति का सर बहुत ज्यादा दुखता हो, सिरदर्द से वह बेचैन रहता हो, मन भारी रहता हो और ढंग से नींद न आती हो, तो ऐसी स्थिति में आसमानी शीशी का पच्चीस ग्राम पानी पिला दे। दो घण्टे बाद 20 ग्राम पानी पिलाएं एवं एक घण्टे बाद 10 ग्राम पानी पिलायें; इससे रोगी की बेचैनी दूर होने लगेगी, नींद आराम से आयेगी, सरदर्द दूर होने लगेगा और चेहरे पर प्रसन्नता आने लगेगी;

कफ अटकना-

हमारे शरीर में कफ की मात्रा ज्यादा बनने लगे तथा बार-बार गले में अटकने लगे, तो लाल शीशी का पानी 25 ग्राम की मात्रा में दिन में चार या पांच बार पिलायें और साथ ही पीली या नारंगी शीशी में सिद्ध किया हुआ तेल पसलियों में मालिस करें। धीरे-धीरे फेफड़ों में कफ कम बनने लगेगा और व्यक्ति को आराम आ जायेगा।

कण्ठमाला-

आसमानी रंग की बोतल में सिद्ध किये हुए पानी से दिन में 5 या 6 बार गरारे करें और आसमानी रंग की बोतल में सिद्ध किये हुए तेल को गिल्टियों में मालिश करें। इससे धीरे-धीरे गले की गिल्टियों की सूजन कम हो जाती है और कंठमाला सही हो जाती है।

कमर दर्द-

कमर दर्द में आसमानी शीशी में सिद्ध किये हुए तेल की मालिश करें। कुछ दिन की मालिश से कमर दर्द सही हो जाता है और रोता हुआ मरीज. मुस्कराने लगता है।

बुढ़ापा-

बुढ़ापे में व्यक्ति कमजोर व लाचार हो जाता है। चलने-फिरने में परेशानी होती है। उसके अंग उसका कहा मानने से इंकार करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में लाल शीशी में सिद्ध किया हुआ पानी खाना खाने के बाद 20-20 ग्राम प्रतिदिन पीने की आदत डाल लें। ऐसा प्रतिदिन करने से शरीर की कार्य क्षमता बढ़ेगी। बुढ़ापे की परेशानियां कम होंगी। पाचनक्रिया में सुधार होगा, रक्त संचार सुचारू रूप से होगा और आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। ध्यान रहे, लाल रंग का पानी मात्रा से ज्यादा न पिये, क्योंकि दवा रूप में लेने से वह लाभ देता है और ज्यादा मात्रा में लेने से वह हानि भी करता है।

मधुमक्खी का डंक-

अगर मधुमक्खी को छेड़ा न जाये, तो वह नहीं काटती है। परन्तु, अगर काट ही ले, तो आसमानी शीशी में सिद्ध किया हुआ तेल काटे स्थान पर लगायें या आसमानी शीशी में सिद्ध किया हुआ पानी उस स्थान पर बार-बार डालें, तो जल्दी ही आराम मिल जाता है। अगर आसमानी कांच से सूर्य की रोशनी भी डाली जाये, तो जल्दी आराम मिलता है।

बदहजमी-

जब मुंह से खट्टी डकारे आने लगे और शरीर में पाचनतंत्र बिगड़ जाये तथा बार-बार बदहज्मी होने लगे, तो प्रतिदिन पानी पीने की मात्रा बढ़ा देना चाहिए। गर्मियों में ठंडा पानी और सर्दियों में हल्का गरम पानी पीना चाहिए। रात्रि में सोते समय पानी पीकर सोना चाहिए और प्रातःकाल शौच जाने से पहले भी पानी पीना चाहिए। इससे धीरे-धीरे पाचनक्रिया में सुधार होता है और खट्टी डकारे आना बन्द होती हैं।

सावधानीः

ध्यान रहे, दवा को दवा समझें। दवा का डोज निर्धारित लें, ज्यादा न लें। ऐसा न सोचें कि यह तो केवल पानी है और आप पूरी बोतल ही पी लें। ऐसा करने पर यह पानी नुकसान भी कर सकता है। अतः निश्चित मात्रा में ही यह सिद्ध जल पियें। एक बात और ध्यान रखें। धूप-पानी चिकित्सा से सिद्ध किया हुआ जल रोग की प्रारम्भिक अवस्था में भरपूर लाभ देता है, किन्तु रोग पुराना होने पर आंशिक लाभ देता है।

Dhup Pani Chikitsa, colour therapy, benefits of color, colour therapy courses, color therapy for depression, chromotherapy treatment, colour therapy in hindi, chromopathy, benefits of colour therapy, chromotherapy glasses, colour therapy tips, chikitsa in hindi

कोई टिप्पणी नहीं

Featured Post

dfli के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.