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थायराइड गलैण्ड के विकार और परेशानियां

थायराइड गलैण्ड के विकार और परेशानियां, Defect in Thyroid Gland and problems


थायराइड एक द्वि-पालिक ग्रन्थि होती है। जो गले के नीचे श्वांस नली के दोनों ओर तितली के आकार में दिखायी देती है। यह स्त्री में पुरुष की अपेक्षा बड़ी होती है। इसी थायराइड ग्लैण्डस से थायरोक्सिन नामक हार्मोन्स का स्त्राव होता है। यही हार्मोन्स शरीर के अनेक अन्दरूनी कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शरीर में भोजन ग्रहण के पश्चात उसका पाचन होकर वह रस शरीर के कोषों में जाकर चयापचय की क्रिया से गुजर कर शरीर को शक्ति और ऊर्जा प्रदान करता है। इस प्रकार चयापचय की क्रिया को नियंत्रित करने का कार्य यह थायरोक्सिन हार्मोन्स करता है। इस हार्मोन्स के कम या ज्यादा स्राव से  चयापचय क्रिया असन्तुलित हो जाती है और हमें अनेक तरह की परेशानियां होने लगती है।
इस चयापचय की क्रिया को आधुनिक विज्ञान मेटाबोलिज्म के नाम से बुलाता है। चय को एनाबेलिज्म और अपचय को एनाबोलिज्म कहते है। जब थायराइड ग्रन्थि से थायरोक्सिन नामक हार्मोन्स का स्त्राव कम होने लगता है, तो उसे विज्ञान हाइपोथायराडिज्म कहते है और जब थायरोक्सिन नामक हार्मोंस का स्राव ज्यादा होता है तो उसे हाइपरथायराडिज्म कहते हैं।

हायपोथायराडिज्म के लक्षण

थायराइड ग्रन्थि से जब थायरोक्सिन का स्राव कम होने लगता है, तो शरीर मोटा होने लगता है, वजन बढ़ने लगता है, भोजन देर से पचता है, चेहरे में सूजन आने लगती है, आवाज भारी और रूखी होने लगती है, हृदय की गति धीमी होने लगती है, नाड़ी धीमी चलने लगती है, श्वांस धीमी चलने लगती है, शरीर का तापमान सामान्य से कम होने लगता है, त्वचा रूखी होने लगती है, बाल पतले और झडऩे लगते हैं, महिलाओं में स्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की शिकायत होने लगती है, पुरुष और स्त्रियों में आलस्य ज्यादा रहने लगता है। बैठे-बैठे ऊंघने की शिकायत होने लगती है, हड्डियां मोटी होने लगती है पुरुष के शुक्र में शुक्रकीट का हास होने लगता है, वैवाहिक जीवन भी असान्त हो जाता है, एक दूसरे के प्रति लगाव कम होने लगता है तथा इन कारणों से सन्तानहीनता की स्थिति बन सकती है।

हाइपरथायराडिज्म

थायराइड ग्रन्थि से जब थायरोक्सिन का स्त्राव ज्यादा होने लगता है, तो भूख अधिक लगने लगती है, श्वांस की गति तेज हो जाती है, शरीर का तापमान बढ़ जाता है, आंखें बाहर को निकल आती है, क्रोध ज्यादा आता है, चिड़चिड़ापन रहता है, धीरे-धीरे हाथ व पैरों में कम्पन्न आने लगता है, चयापचय की वृद्धि हो जाती है, हृदय की गति तेज हो जाती है, नाड़ी तीव्र चलने लगती है, घेंघा रोग पैदा हो जाता है, रक्त की कमी होने लगती है, व्यक्ति कमजोर होने लगता है, कमोतेजना कम होने लगती है, संभोग के प्रति अरुचि होने लगती है और धीरे-धीरे व्यक्ति संभोग करने में असमर्थ हो जाता है। इन परिस्थितियों में सन्तानहीनता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

कारण

यह रोग आयोडीन की कमी से होता है। पर्वतीय प्रदेश के पानी में आयोडीन की मात्रा कम होने से वहां के लोगों को ये रोग अधिक होने की सम्भावना रहती है। इसके अलावा विलासपूर्ण जीवन जीने के कारण भी होता है। अनियमित दिनचर्या व गलत खानपान से भी इनके होने की सम्भावना रहती है, अधिक तेलीय भोजन, एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट, मानसिक तनाव अधिक क्रोध भी इसका कारण हो सकता है।

शिशुओं में रोग के लक्षण

कुछ शिशु जन्म से ही इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। इन्हें दूध पीने में दिक्कत होती है, कब्ज रहने लगती है, उनका शारीरिक विकास मन्द हो जाता है, ऐसे बच्चे देर से बैठते है, चलना फिरना भी देर से होता है, त्वचा सूखी और खुरदरी हो जाती है, शिशु का शारीरिक विकास मंद होने की वजह से ये बच्चे नाटे हो जाते है, मानसिक विकास भी कम होता है।

बचाव

जैसे ही हमें इस तरह के कुछ लक्षण दिखाई दें, तो तुरन्त ही किसी अच्छे डॉक्टर या वैद्य से सलाह लेकर इसकी जांच करायें और उनके द्वारा जो दवायें और खान-पान में परहेज बताया जाये, तो उसका पूर्णतया पालन करें।
नशे से सम्बन्धित किसी भी तरह के उत्पाद का सेवन तत्काल बन्द करें, यह भी इस रोग का एक बड़ा कारण है। नशे के सेवन से माँ-बाप के खून में अनेक परिवर्तन आते हैं जिस कारण से बच्चों को यह कष्ट झेलना पड़ता है।

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