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निरोगी जीवन का आधार है ‘‘प्राणशक्ति’’

Nirogi jeevan ka adhar hai pranshakti

निरोगी जीवन का आधार है ‘‘प्राणशक्ति’’, 

Nirogi jeevan ka adhar hai pranshakti

समस्त ब्रह्माण्ड में प्राणशक्ति समाहित है। इसी प्राणशक्ति से सभी का जीवन संचालित होता है। मानव जीवन सभी जीवों से सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इसमें सोचने-समझने की शक्ति अन्य सभी जीवों से अधिक है। मानव शरीर में प्राणशक्ति का एक अंश हर समय कार्य करता है और इसके समाप्त होते ही शरीर निर्जीव हो जाता है।

जिस प्रकार मानव शरीर को पूर्ण स्वस्थ और बलिष्ठ बनाये रखने के लिए शुद्ध खाद्यान्न और पानी की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार शरीर को निरोगी और मस्तिष्क को तीव्र करने के लिए प्राणशक्ति की आवश्यकता होती है।

वैज्ञानिकों की दृष्टि में वायु में विद्यमान ऑक्सीजन से शरीर के समस्त कार्य संचालित होते हैं। रक्त शुद्ध होकर शरीर में भ्रमण करता हुआ शरीर को पुष्ट एवं निरोगी बनाता है। परन्तु ध्यान रहे, प्राणशक्ति ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में समाहित है और यही प्राणशक्ति का अंश ऑक्सीजन के साथ जाकर शरीर को संचालित करता है। अगर किसी कारणवश यह प्राणशक्ति शरीर में जाना बन्द कर दे, तो शरीर निर्जीव हो जाता है।

उस परिस्थिति में हम शरीर में चाहे जितनी ऑक्सीजन दें, तब भी शरीर चैतन्य नहीं हो पाता है और वह सड़-गलकर समाप्त हो जाता है।


शरीर को निरोगी एवं स्वस्थ बनाये रखने के लिए हमारे अन्दर ऑक्सीजन की नितान्त आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति हम श्वास प्रश्वास के माध्यम से करते हैं। शरीर को सामान्य चलायमान रखने के लिए सामान्य ढंग से श्वास प्रश्वास का प्रयोग करते हैं। इससे हमारे अन्दर प्राणशक्ति बहुत कम मात्रा में जाती है। इस परिस्थिति में शरीर कमजोर एवं रोगों से घिरा हुआ चलायमान रहता है।
सुबह ब्रह्ममुर्हूत या सूर्योदय के पहले वातावरण प्रदूषणमुक्त तथा ऑक्सीजन से भरपूर रहता है। चारों तरफ प्राणवायु की अधिकता रहती है। ऐसी स्थिति में प्रतिदिन सूर्योदय के पहले बिस्तर त्यागकर आंखों और मुख को ठंडे पानी से धोकर, उस खुले वातावरण में एक किलोमीटर तक तेज गति से पैदल चलना चाहिए। इससे हमारी श्वांस तेज गति से चलेगी और भरपूर मात्रा में प्राणशक्ति युक्त ऑक्सीजन हमारे शरीर में प्रवेश करेगी।

शरीर को पूर्ण स्वस्थ एवं निरोगी रखने के लिए हमें ज्यादा प्राणशक्ति की आवश्यकता होती है। इसके लिए हमें खुले वातावरण में, अर्थात् प्रकृति के नजदीक बैठकर प्राणों का आयाम करने की जरूरत होती है। धीरे-धीरे गहरी श्वास अन्दर भरें एवं धीरे-धीरे बाहर निकालें। इससे शुद्ध वायु के साथ ऑक्सीजन और प्राणतत्त्व हमारे शरीर में प्रवेश करेगा। हमारे शरीर का रक्त शुद्ध होकर सम्पूर्ण शरीर के अंगों को बल देगा और प्राणतत्त्व हमारे रोम-रोम को चैतन्य और ऊर्जामय बनायेगा।

प्राणायाम के द्वारा हम अपने शरीर एवं मन को निरोगी एवं चैतन्य बनाते हैं। ब्रह्माण्ड में समाहित प्राणशक्ति को हम जितना ज्यादा से ज्यादा अपने शरीर में समाहित करते हैं, उतना ही हम अपने शरीर को स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाते हैं। साथ ही मस्तिष्क को चैतन्य और प्रतिभावान बनाते है। इसी प्राणशक्ति के माध्यम से अनेक चमत्कारिक कार्य सम्भव होते हैं। यही ऊर्जा मनुष्य को ऊचाइंयों तक पहुंचाने में सहायक होती है।
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