मल्टीविटामिन्स, Multivitamin
मल्टीविटामिन्स, Multivitamin
विटामिन ‘ए’ (Update this)
विटामिन बी कॉम्पलेक्स
विटामिन बी-1 (Thaiamine-थायमिन)- थायमिन शरीर में ग्लूकोज को विखण्डित करके उसे
ऊर्जा में परिवर्तित करने में सहायक है। यह सभी कोशिकाओं और तंत्रिकाओं को स्वस्थ रखने में सहायक है। यह शरीर की सामान्य भूख और
स्मरणशक्ति के लिए आवश्यक है। यह मस्तिष्क के लिए एसीटाईल कोलिन बनाने में सहायक
है।
थायमिन की कमी होने पर कार्बोहाईडेªट और एमिनो एसिड के चयापचय में बाधा पड़ती है। इस कारण शरीर
में शिथिलता एवं याददाश्त में कमी होने लगती है। इसकी कमी से शरीर में बेरी बेरी
रोग, आंख की पुतली का अनैच्छिक हिलना, आंख की नसों का पच्क्षाघात और मानसिक रोग होने की सम्भावना
बढ़ जाती है।
थायमिन अधिकतर साबुत अनाज, तिल के बीजों में, विभिन्न तरह
की बीजों में,
विभिन्न तरह की फलियों में एवं सूखे मेवों में पाया जाता
है।
विटामिन बी-2 (Riboflavin-राइबोफ्लेविन)- राइबोफ्लेविन एक एंटीऑक्सीडेण्ट है, जो खाने को एनर्जी में बदलने का काम करता है। यह शरीर की
वृद्धि, विकास, स्वस्थ त्वचा एवं अच्छी
दृष्टि के लिए आवश्यक है।
राइबोफ्लेविन की कमी से त्वचा में खुजली, गले की खराश, मुंह के आसपास फटना या
सूजन, क्रॉनिक डायरिया, बालों का
झड़ना व रोशनी के प्रति संवेदनशीलता हो सकती है।
विटामिन बी-2 की पूर्ति दूध, दही, पनीर, साबुत अनाज वाली ब्रेड एवं हरी सब्ज़ियों के अधिकाधिक सेवन
से की जा सकती है।
विटामिन बी-3 (Niacin-नायसिन)- यह कार्बोहाइड्रेट को ऊर्जा में परिवर्तित करने
में सहायक है। यह हार्मोन बनाने में, त्वचा को
सही रखने के लिए ज़रूरी है तथा नर्वस सिस्टम को और पाचन तंत्र को सुचारु रूप से
चलाने में सहायक है।
नायसिन की कमी होने पर पेलेग्रा नामक बीमारी होने का ख़तरा
रहता है। स्मरणशक्ति कमज़ोर होने लगती है और व्यक्ति धीरे-धीरे डिप्रेशन का शिकार
होने लगता है। उदासी एवं मानसिक अस्थिरता बढ़ने लगती है। व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, भूख की कमी, चक्कर आना, कमज़ोरी आदि परेशानियां होने लगती हैं।
नायसिन अधिकतर हरी सब्ज़ियों, अनाज, दूध, मशरूम, नट्स और प्रोटीनयुक्त
पदार्थों में पाया जाता है।
विटामिन बी-5 (Pantothenic acid-पैंटोथीनिक एसिड)- पैंटोथीनिक एसिड फैटी ऐसिड के चयापचय में
सहायक है। यह वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के
विखण्डन में सहयोग करता है। यह तनाव को कम करने में सहायक है। यह हार्मोन्स के
निर्माण में भी सहायक की भूमिका निभाता है।
इसकी कमी से भूख में कमी, क़ब्ज़, मितली की शिकायत, उल्टी, नींद में कमी, अनिद्रा और थकान आदि परेशानियां हो सकती है। विटामिन बी-5 प्रत्येक खाद्य पदार्थ में कुछ न कुछ मात्रा में पाया जाता
है। इसकी अधिक मात्रा दूध, साबुत अनाज, फलियां, खमीर आदि में पाई जाती
है।
विटामिन बी-6 (Pyridoxine पायरीडाक्सीन)- यह एमिनो एसिड और ग्लाइकोजन के चयापचय में
सहायक है। यह प्रोटीन एंजाइम के निर्माण में भी सहायक है। यह रक्त में रेडसेल्स, हीमोग्लोबिन के निर्माण में सहयोगी है, इससे शरीर की इम्यून और नर्वस सिस्टम को कार्य करने में मदद
मिलती है।
शरीर में इसकी कमी होने से अनिद्रा, उदासी, आत्मविमोह, मनोविक्षिप्तता, अति
क्रियाशीलता, मुंह के कोनों में क्रेक, चिड़चिड़ापन, मांसपेशियों में खिंचाव
जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
विटामिन बी 6 अधिकतर केला, आलू, बीन्स, बीज, साबुत अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियां, फलियां, सूखे मेवे और उच्च
प्रोटीन युक्त भोजन में पाया जाता है।
विटामिन बी 7 (Biotin बायोटिन)- यह ऊर्जा, एमिनोऐसिड के चयापचय और वसा, ग्लाइकोजन के संश्लेषण में सहायक एंजाइम के रूप में कार्य
करता है।
शरीर में इसकी कमी होने से नेत्र रोग, केन्द्रीय तन्त्रिकातंत्र में असमानता, त्वचा का पीला होना, ब्लड प्रेशर असामान्य होना, सुस्ती, मांसपेशियों में दर्द, जीभ में क्रेक और दर्द, मतिभ्रम, अवसाद, भूख कम लगना, मिचली आना, त्वचा शुष्क होना, बाल झड़ना, कमजोरी और थकान हो सकती है।
विटामिन बी 7 अधिकतर फूलगोभी, मूंगफली, खमीर और मशरूम में पाया
जाता है
नोट- इसका अधिक सेवन रक्त में कोलेस्ट्राल के स्तर को बढ़ा
सकता है।
विटामिन बी 9 (Folic acid फोलिक एसिड)- यह डीएनए के संश्लेषण, भ्रूण के तंत्रिका तंत्र के विकास, आर बी सी एस के गठन के लिए आवश्यक है। यह सेल के विकास एवं
उसके विभाजन के लिए भी आवश्यक है। यह दिल को स्वस्थ रखने में सहायक है। गर्भावस्था
में शिशु के लिए उपयोगी है। यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
फोलिक एसिड की कमी से गर्भावस्था के दौरान न्यूरल ट्यूब में
डिफेक्ट होने का खतरा रहता है। इसकी कमी से थकान, कमजोरी, एनीमिया और वजन में कमी
हो सकती है।
फोलिक एसिड अधिकतर अनाज, पत्तेदार हरी सब्जियों, फलियों और खट्टे फलों में पाया जाता है।
विटामिन बी 12 (Cobalamins कोबलामिन्स)- यह फैटी एसिड और एमिनों एसिड को तोड़कर ऊर्जा
का उत्पादन करने में मददगार है। यह दिमाग, तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं और लालरक्त कोशिकाओं के निर्माण
के लिए जरूरी है।
विटामिन बी 12 की कमी से शरीर में
कमजोरी, थकान, भूख न लगना, दिल की असमान्यता, अवसाद और
याददाश्त की कमजोरी हो सकती है।
विटामिन बी 12 अधिकतर-दूध, पनीर और दूध से बनी चीजों में पाया जाता है।
विशेष नोट- कुछ दवाओं का सेवन शरीर में विटामिन बी के
अवशोषण को कम करता है। जैसे- कुछ एलोपैथिक दवायें-एस्पिरिन, एंटीबायोटिक, गर्भनिरोधक, नींद, मूत्रल व रेचक की
गोलियां, अधिक चीनी, काफी व एल्कोहल का सेवन
आदि। अतः ध्यान दें कि ऐसी दवाओं का अधिक सेवन न करें।
ये विटामिन पानी में घुलनशील हैं और शरीर में स्टोर नहीं
होते हैं, इसलिए इन विटामिनों की कमी को रोकने के लिए सन्तुलित आहार
का लेना आवश्यक है।
विटामिन ‘सी’
विटामिन सी का दूसरा नाम एल-एस्कॉर्बिक अम्ल है। यह मानव
एवं विभिन्न पशु प्रजातियों के लिए आवश्यक विटामिन है। विटामिन सी शरीर की कई तरह
की रासायनिक क्रियाओं में सहायक है। यह कोशिकाओं तक ऊर्जा एवं तंत्रिकाओं तक संदेश
पहुंचाने में सहायक है। यह विटामिन हमारे शरीर की हड्डियों, दांतों और मसूढ़ों को मजबूती प्रदान करता है। हड्डियों को
जोड़ने वाला पदार्थ कोलाजेन के निर्माण व लिगामेंट्स कार्टिलेज आदि अंगों के
निर्माण में भी यह विटामिन सहयोगी है। विटामिन सी एक ऑक्सीडेन्स के रूप में भी
कार्य करता है। यह शरीर के विभिन्न अंगों के निर्माण में भी सहयोग करता है। यह
कोलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित करता है। यह शरीर की नस-नाड़ियों को मजबूती प्रदान
करता है। यह त्वचा के रोगों को दूर करने वाला एवं खून को साफ करता है। यह पेट को
साफ रखने में सहायक है। यह विटामिन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है।
यह शरीर के बृद्ध होने की प्रक्रिया को भी धीमा करने में सहायक है।
विटामिन सी की कमी से शरीर में दूषित जीवाणुओं की वृद्धि हो
सकती है। इस कारण से शरीर में रक्तविकार उत्पन्न होने, आंखों में मोतियाबिन्दु होने, पाचन क्रिया खराब होने, भूख न लगने, रक्त की कमी होना, चेहरे पर दाग-धब्बे होना, फेफड़ों का कमजोर होना, चर्म रोग होना, गर्भपात
होने की संभावना बढ़ने, चमड़ी में एलर्जी होना, अल्सर होना, शरीर में हुए किसी भी
घाव में मवाद बढ़ना, दांतदर्द, मसूढ़ों से खून आने, दांतों के हिलने, चमड़ी पर चोट
लगने से खून अधिक बहने, त्वचा के रूखा होने तथा
स्कर्वी रोग होने का खतरा रहता है।
विटामिन सी जल में घुलनशील है। इसका शरीर में निर्माण नहीं
होता है, अतः इसे खाद्य पदार्थ के साथ फलों और सब्जियों द्वारा अलग
से ग्रहण करना होता है।
विटामिन सी के अच्छे स्रोत खट्टे रसीले फल होते हैं, जैसे- नींबू, सन्तरा, अन्नास, स्ट्रॉबेरी, टमाटर, अंगूर, अमरूद, केला, बेर, कटहल, शल्जम, पुदीना के पत्ते, मूली के पत्ते, मुनक्का, दूध, चुकन्दर, चौलाई के पत्ते, बन्द गोभी, हरा धनिया, पालक, लाल मिर्च और आंवला। सेब के रस एवं अंकुरित दालों में भी
विटामिन सी पाया जाता है।
एक मनुष्य को प्रतिदिन औसतन 80 मिलीग्राम विटामिन सी की जरूरत होती है। किसी भी मनुष्य के
एक दिन के लिए एक गिलास संतरे का रस विटामिन सी की पूर्ति करता है।
अत्यधिक विटामिन सी का सेवन शरीर के लिए हानिकारक भी हो
सकता है। एक दिन में मनुष्य को 1000 मिलीग्राम से अधिक
विटामिन सी नहीं ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा गुर्दे की पथरी
होने का खतरा बढ़ जाता है। यह पथरी आक्ज़ेलेट क्रिस्टल की बनी होती है। इसके बनने से
मूत्र विसर्जन में जलन एवं दर्द होने लगता है।
विटामिन ‘डी’
विटामिन डी (कैल्सीफेरोल)- विटामिन डी शरीर के लिए आवश्यक
विटामिन माना जाता है। यह वसा में घुलनशील प्रो हार्मोन का एक समूह होता है। जो
आंतों से कैल्शियम को सोखकर हड्डियों में पहुंचाता है और शरीर के वसा व फैट में
संग्रहित रहता है।
यह विटामिन डी दो रूपों में पाया जाता है। पहला विटामिन डी-2, जिसका रासायनिक नाम आर्गोकेलसीफेरोल है। और, दूसरा विटामिन-डी 3 कहलाता है, जिसका रासायनिक नाम
कोलेकेलसीफेरोल है।
यह विटामिन डी प्रमुखतः सूर्य के प्रकाश में पाया जाता है
और कुछ खाद्य पदार्थ और अन्य पूरकों से प्राप्त होता है। शरीर में मिलने वाला
विटामिन डी, जो कैल्सीटाईऑला के रूप में पाया जाता है, वह सक्रिय रूप में होता है। शरीर की त्वचा जब सूर्य के
प्रकाश (धूप) के सम्पर्क में आती है, तो शरीर के
अन्दर विटामिन डी का निर्माण प्रारम्भ होजाता है। इसके लिए जरूरी है कि शरीर में
कम से कम कपड़े पहनकर सूर्य स्नान किया जाए या सूर्य की रोशनी में पर्याप्त मेहनत
के कार्य किये जाये या सुबह-शाम धूप में टहला जाये, जिससे शरीर में आवश्यक विटामिन डी का निर्माण हो सके, अन्यथा हमें ऊपर से विटामिन डी लेने की आवश्यकता होगी।
विटामिन डी की खासियत है कि यह कैल्शियम को शरीर में रोके
रखने में मदद करता है। यह कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाए रखता है। कैल्शियम की
कमी से हड्डियां कमजोर, मुलायम और पतली होने
लगती हैं। ऐसी स्थिति में हड्डियों में थोड़ा सा भी दबाव पडऩे पर यह टूट जाती हैं, जो शरीर के लिए अति नुकसानदायक है। विटामिन डी हमारे फेफड़ों
की क्षमता को बढ़ाने में भी सहयोगी है। यह हार्ट की परेशानी को दूर करने में सहायक
है। देखा गया है कि जो व्यक्ति धूप के सम्पर्क में कम रहते हैं, उनका स्वास्थ्य सही होने के बावजूद भी हृदयाघात और दिल की
अनेक परेशानियां बढ़ जाती हैं। उनकी खून की जांच में पाया गया है कि उनमें विटामिन
डी की कमी थी।
इसके अलावा विटामिन डी क्षय रोग को बढऩे से रोकता है तथा
कैंसर जैसे खतरनाक रोग को भी कन्ट्रोल करने में सहयोग देता है। यह विटामिन डी शरीर
की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में भी सहयोगी है।
विटामिन डी की अधिकता भी शरीर के लिए नुकसानदायक है। इसकी
अधिकता से चक्कर आना, कमजोरी लगना, सिरदर्द होना, मूत्राशय, गुर्दे, रक्तवाहिकाओं में एक
प्रकार की पथरी बन सकती है। इसका मुख्य स्रोत सूर्य का प्रकाश है, जो शरीर के सम्पर्क में आकर विटामिन डी का निर्माण प्रारम्भ
कर देता है।
यह विटामिन डी कुछ खाद्य पदार्थों में स्वाभाविक रूप से पा
जाता है। जैसे-मसरूम, ओइस्टर, सोया उत्पाद,(सोया मिल्क, सोया बरी, सोया पनीर), दूध, मक्खन, चीज़ व मछली के तेल में
पाया जाता है।
विटामिन ‘ई’
विटामिन ‘ई’-विटामिन ई शरीर में होने वाली कोशिकाओं की टूट-फूट और घावों
को भरने में सहायक है। यह खून में लाल रक्त कणिकाओं को बनाने में काम आता है। यह
विटामिन शरीर के अनेक अंगों को सामान्य रूप से बनाये रखने में सहायक है। यह
विटामिन शरीर को ऑक्सीजन के नुकसानदायक रूप से बचाता है, जिसे ऑक्सीजन रेडिकल्स कहते हैं और जो शरीर के लिए
नुकसानदायक होते हैं। यह शरीर की कोशिकाओं के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए उसके
बाहरी कवच को सुरक्षित रखने में सहायक है। विटामिन ई की पर्याप्त मात्रा शरीर में
एंटीऑक्सीडेंट को बढ़ाता है।
यह विटामिन हृदय को बल देने वाला है और इससे हृदय सुरक्षित
रहता है। यह विटामिन पुरुष की प्रजनन शक्ति को बढ़ाने वाला है तथा स्त्री की
गर्मधारण की क्षमता को बढ़ाने में सहायक है। यह शरीर के हार्मोन्स सन्तुल को बनाये
रखता है। यह विटामिन शरीर के फैटी एसिड को संतुलित रखता है। साथ ही चेहरे की
कान्ति को बढ़ाता है तथा त्वचा को कसावदार, सुडौल एवं चमकदार बनाता है और त्वचा में आई झुर्रियों को भी
दूर करने में सहायक है। विटामिन ई दिमाग की नसों या न्यूरोजीकल समस्या को कम करता
है। मानसिक तनाव व परेशानी को भी कम करता है।
विटामिन ई की कमी से हृदय रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
पुरुषों में नामर्दी की शिकायत और स्त्रियों में यौन दौर्बल्यता की शिकायत हो सकती
है। स्त्रियों में गर्मधारण की क्षमता कम हो सकती है। समय से पहले जन्में बच्चों
में विटामिन ई की कमी से खून में कमी होजाती है। इस कारण से उन्हें एनीमिया की
शिकायत हो सकती है। इस विटामिन की कमी से सबसे ज्यादा असर थायराइड ग्लैण्ड एवं
पिट्यूटरी ग्लैण्ड की कार्यशैली पर पड़ता
है। इस विटामिन की कमी से ग्लैण्ड का कार्य प्रभावित होता है और वह धीमी गति से
कार्य करने लगता है। इस कारण शरीर में सिथिलता, थकान एवं भारीपन महसूस होने लगता है।
विटामिन ई के अत्यधिक सेवन से रक्त कोशिकाओं पर विपरीत
प्रभाव पड़ता है,
जिससे शरीर से खून के बहने जैसी बीमारी हो सकती है। इसलिए
कभी भी विटामिन ई का सेवन अत्याधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए।
विटामिन ई शहद, अंकुरित
अन्न, जौ, दूध, केला, खजूर, सेब, गाजर, लहसुन, चावल का माढ़, हरी सब्जियों, क्रीम, बटर, स्प्राउट, ड्राई फ्रूड व वनस्पति तेलों में पाया जाता है। प्राकृतिक
रूप से प्राप्त विटामिन का सेवन शरीर के लिए अधिक उपयोगी है, परन्तु प्राकृतिक रूप से इसकी पूर्ति न होने पर कृत्रिम रूप
से भी इसका सेवन किया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे किसी
डॉक्टर की सलाह पर ही इस विटामिन का सेवन अलग से करें।
विटामिन ‘के’
विटामिन ‘के’ शरीर के लिए आवश्यक विटामिन है। यह विटामिन वसा में घुलनशील
है और शरीर में प्रवाहित रक्त के बाहर निकलने पर तुरन्त थक्के जमाता है, जिससे शरीर में चोट लगने पर रक्त ज्य़ादा न निकल सके।
विटामिन ‘के’ मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है-- पहला, विटामिन ‘के-1’ और दूसरा विटामिन ‘के-2’। विटामिन ‘के-1’ ज्य़ादातर हरी पत्तेदार
सब्ज़ियों एवं कुछ फलों जैसे किवीफ्रूट व एवोकेडो में पाया जाता है और ‘के-2’ डेयरी उत्पादों में पाया
जाता है।
विटामिन ‘के’ शरीर में इन्सुलिन के निर्माण में भी मदद करता है और रक्त
में शुगर के स्तर को ठीक रखने में मददगार है।
अगर आप खाने में विटामिन ‘के’ की उचित मात्रा ले रहे
हैं, तो डायबिटीज़ होने का खतरा कम होजाता है। आज भारत में करोड़ों
की तादात में लोग डायबिटीज़ के शिकार हैं। इन सबका कारण खान-पान में दोष एवं
अनियमितता है तथा मोटापा और मानसिक तनाव भी एक कारण है। डायबिटीज़ होने का एक बड़ा
कारण शरीर में कार्बोहाइड्रेट और
ग्लूकोज़ का ऑक्सीकरण ठीक से न होना है। यह सब इन्सुलिन की कमी से होता है। शरीर
में पैन्क्रियाज़ नामक ग्रन्थि होती है, जो इन्सुलिन
नामक हार्माेन्स का उत्पादन करती है। यही हार्मोन्स ग्लूकोज़ का ऑक्सीकरण करके रक्त
में ग्लूकोज़ के स्तर को सामान्य करता है और इसकी कमी से डायबिटीज़ की बीमारी पैदा
होती है।
डायबिटीज़ के रोगी को जब भी चोट लगती है, तो रक्त बहता ही रहता है। विटामिन ‘के’ के सेवन से इसमें रोक
लगती है एवं रक्त में थक्का जमने की स्थिति पुनः उत्पन्न होती है। इसलिए डायबिटीज़
के रोगी सन्तुलित मात्रा में ऐसी पत्तेदार सब्ज़ियों और डेयरी उत्पादों का सेवन
अवश्य करें, जिनमें विटामिन ‘के’ की मात्रा अधिक से अधिक हो।
विटामिन ‘के’ की कमी से शरीर में रक्तस्राव की अधिकता हो सकती है। शरीर
में कहीं से भी रक्त का स्राव हो रहा हो, चाहे वह
मासिकधर्म के रूप में हो या नाक से या मसूड़ों से रक्त बहने आदि के रूप में हो। इन
सबका होना विटामिन ‘के’ की कमी को दर्शाता है। विटामिन ‘के’ की कमी से हड्डियों का
टूटना व हड्डियों का दुर्बल हो जाना भी हो सकता है और हृदय वाल्व व रक्त धमनियों
का कड़ा होना भी हो सकता है।
विटामिन ‘के’ के प्रमुख स्रोत हैं--मूली, गाजर, बन्दगोभी, सोयाबीन, दूध, चुकन्दर, शलजम, ब्रोकोली, पार्सले, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, केला, पालक एवं सरसों के
पत्ते।
नोट- शरीर में विटामिन ‘के’ की कमी केवल तब ही होती है, जब शरीर की आंतें विटामिनों को ठीक से अवशोषित नहीं कर पाती हैं। लम्बे समय तक एन्टीबायोटिक दवाओं का सेवन भी इसका कारण हो सकता है। पित्त की थैली के रोग या सिस्टक थाइब्रोसिस सीलिएक रोग भी एक कारण है। ऐसी परिस्थिति में किसी अच्छे डॉक्टर की सलाह पर विटामिन ‘के’ का उचित मात्रा में सेवन लाभदायक होता है।
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