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ऑयल थेरेपी, Oil Therapy

 ऑयल थेरेपी, Oil Therapy

नीम का तेल, Neem oil

नीम एक सर्व सुलभ, प्रत्येक जगह पाया जाने वाला वृक्ष है। इसका वृक्ष घनी छाया देने वाला बड़ा वृक्ष है। इसका पूरा पंचांग ही औषधीय कार्यों में उपयोगी है। इसकी पत्तियां अति कड़वी होती हैं, इसके बीजों की निबोली से एक तेल निकलता है, जो आयुर्वेद में अति उपयोगी होता है। यही तेल अनेक बीमारियों को दूर करने वाला है। चर्म रोगों में अत्यन्त लाभदायक है। किसी भी तरह के चर्मरोगों में नीम के तेल की मालिस अत्यन्त लाभदायक है। शरीर में कहीं भी खाज या खुजली हो गई हो, तो नीम के तेल की मालिस उसे सही कर देती है, नीम के तेल में एक अजीब तरह की गंध रहती है, उस स्थिति में नीम के तेल में सरसों या तिल का तेल या कोई भी सुगन्धित तेल मिलाकर उपयोग करें। अगर दांतों में पायरिया हो गया हो तो जो आप टूथपेस्ट उपयोग करते हों, तो उसमें दो बूंद नीम का तेल डालकर ब्रुस करें, कुछ दिनों के उपयोग से मुंह की दुर्गन्ध दूर होने लगेगी और पायरिया भी धीरे-धीरे सही होने लगेगा। दांतों से खून आना, दांतों का हिलना, दांत का दर्द तथा दांतों में पानी लगना आदि सही होगा।

अगर किसी व्यक्ति के कोई फुंसी या घाव हो गया हो और वह जख्म न भर रहा हो, तो नीम के तेल को किसी कपड़े में लगाकर उस घाव में बांधना चाहिये, इससे घाव के जीवाणु खत्म होकर घाव पूरी तरह से सही होता है। नीम के तेल से लगातार पट्टी करने से नासूर भी सही हो जाता है। अगर किसी को ज्यादा पसीना आता हो तो 7-8 बूंद नीम का तेल गाय के दूध में डालकर लगातार सुबह कुछ दिन पीने से यह परेशानी दूर होती है। सर में नींम के तेल की मालिस करने से गंजापन नहीं आता है। चेचक के दागों में नीम के तेल की मालिस करने से दाग अच्छे होते हैं। चेहरे के दाग, धब्बे, कील, मुहासे भी नीम के तेल की मालिस से अच्छे होते हैं।

जैतून का तेल (ओलिव आयल)  Olive oil

यूनानी मत से जैतून का तेल दूसरे दर्जें में गरम होता है इसलिए इसका उपयोग सर्दियों में अधिक उपयोगी है। इसमें विटामिन ई की मात्रा भरपूर होती है। बालों में लगातार लगाने से बाल मजबूत तथा चमकीले बनते हैं, बालों का झडऩा रुकता है तथा असमय बाल सफेद नहीं होते है। बालों का रुखापन सही होता है, बाल काले और घने उगते हैं। तेल को बालों में लगातार लगाये तथा 5 ग्राम की मात्रा में गाय के 200 ग्राम दूध में डालकर पिये। इससे परिणाम जल्दी आते हैं।

जैतून के तेल को एक-एक बूद आंखों में प्रतिदिन सोते समय डालने से आखें स्वस्थ रहती हैं दृष्टि भी स्थिर रहती है, जाला, माड़ा नहीं होता है, अगर हो गया हो तो धीरे-धीरे कट जाता है। जैतून का तेल गाय के दूध के साथ पीने से रक्त में मिले खराब कोलेस्ट्राल को कम करता है साथ ही इस तेल में फैटी ऐसिड की मात्रा भी पर्याप्त होती है, जिससे हृदय रोगियों के लिए बहुत लाभदायक है, इसके सेवन से हृदय रोगों से बचाव होता है। साथ ही सुगर के रोगियों के लिए भी लाभदायक है। सुगर रोगियों के रक्त में सुगर की मात्रा सन्तुलित रखने में जैतून तेल सहयोगी है।

जैतून का तेल एंटी आक्सीडेंट से भरपूर है इसमें विटामिन ई की मात्रा रहती है, जिससे त्वचा में इस तेल की मालिस बहुत लाभदायक है। त्वचा का रूखापन मिटता है और त्वचा सुन्दर तथा चमकीली बनती है, असमय आने वाली झुर्रियां मिटती है। सर्दियों में जैतून के तेल की मालिस शरीर को स्फूर्ति प्रदान करती है। चेचक के दागों पर लगाने से दाग सही होते हैं।

लकवा ग्रसित रोगी जैतून के तेल में महाविषगर्भ तेल मिलाकर मालिस करे तो लकवा रोग में बहुत आराम मिलता है। ध्यान दें आज कल मार्केट में मिलावटी तेल बहुत आता है, मिलावटी तेल का सेवन लाभ नहीं देता है।

चन्दन का तेल, Sandalwood oil

चन्दन से हम सभी परिचित हैं। धार्मिक एवं मांगलिक कार्याे में चन्दन का प्रयोग शुभ माना जाता है। देवी-देवताओं के पूजन में चन्दन का प्रमुख स्थान है। इसमें मनमोहक सुगन्ध होने के कारण सौन्दर्य प्रसाधनों व साबुन में इसके तेल का प्रयोग किया जाता है। इसकी सुगन्ध मन को शान्ति देती है।

आयुर्वेद में भी चन्दन का उपयोग बहुतायत से होता है। चन्दन में तेल की मात्रा भी होती है, जिसका उपयोग विभिन्न सौन्दर्य प्रसाधनों, साबुन एवं पीने वाले शर्बतों में किया जाता है।

चन्दन जाति भेद से दो प्रकार का होता है। स्वेतचन्दन एवं रक्तचन्दन। यह दोनों तरह का चन्दन आयुर्वेद में उपयोग किया जाता है। चन्दन यज्ञादि कार्यों में भी उपयोग आता है।

चन्दन की तासीर शीतवीर्य, खाने में तिक्त मधुर, शरीर के अन्दर बाहर की जलन को शान्त करने वाला, सिर में मालिस करने से सरदर्द को राहत देने वाला, शर्बत के रूप में लेने से प्यास को शान्त करने वाला, विष के प्रभाव को कम करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला है। सिरदर्द व मानसिक परेशानी होने पर सिर में चन्दन के तेल की मालिस करें व चन्दन की लकड़ी का बुरादा, धनिया के बीज का पाउडर, खरबूजा के बीज तथा मिश्री को पीसकर एक गिलास पानी में शर्बत बनाकर पिलायें, तो सरदर्द सही होता है।

01-गर्मियों के दिनों में पूरे शरीर में जलन होने पर या लू लगने पर चन्दन की लकड़ी को घिसकर मस्तक एवं पैर के तलवों में लेप करें व चन्दन का बुरादा, गुलाब के फूल, कालीमिर्च, सौंफ, खीरा के बीज, धनिया के बीज व मिश्री, इन सबको पीसकर शर्बत बनाये और सुबह दोपहर शाम को पिलायें। इससे शरीर की जलन शान्त होती है व मन प्रसन्न होता है।
02-गर्मियों में पैरों की एडिय़ां फट जाती हैं और उनसे खून तक निकलने लगता है व चलने में परेशानी होती है, पैर बदरूप दिखते हैं। ऐसी परिस्थिति में चन्दन का तेल, देशी मोम, पीली राल, देशी घी, इन सबको गर्म कर पेस्ट बनायें। प्रतिदिन रात्रि में सोते समय पैर की ऐडियों को अच्छी तरह से साफ करके उसमें यह पेस्ट लगाकर ऊपर से मोजे पहन कर सो जायें। इस प्रकार कुछ दिन लगाने से ऐडियों का फटना सही होता है, पैर साफ एवं सुन्दर हो जाते हैं।
03-चन्दन का बुरादा, छोटी इलायची, त्रिफला, छिरहटा की पत्ती व मिश्री को पीसकर उसका शर्बत बनाकर 7 दिन सुबह व रात्रि में पीने से स्वेत प्रदर सही होता है।
04-गर्मियों के दिनों में चन्दन का शर्बत पीने से शरीर की जलन शान्त होती है।
05-शरीर में चन्दन के तेल की मालिस करने से पसीने की बदबू मिटती है।
06-चन्दन के तेल की तीन या चार बूंदे बतासे में डालकर सुबह खाली पेट खाने से कुछ दिनों में सूखी खांसी सही होती है।
07-गर्मियों में नकसीर फूटने पर चन्दन के तेल की कुछ बूंदे नाक में डालने से आराम मिलता है।

चमेली का तेल, Jasmine oil

चमेली एक झांडी सदृश्य फैलने वाली वनस्पति है। जो बाग, बगीचों में लगाई जाती है। घर के गमलों में इसकी कलम को लगाने से यह लग जाती है। और दीवार या गेट के सहारे फैलती है। इसके फूल सफेद रंग के बड़े ही मनमोहक सुगन्ध वाले होते हैं। चमेली के पुष्पों से इत्र भी बनाया जाता है।

चमेली के तेल से सरदर्द सही होता है। चमेली का तेल जो बाजार में चमेली का तेल नाम से मिलता है, वह ज्यादा कारगर नहीं होता है क्योंकि उस तेल को इत्र डालकर बनाते हैं इसलिए सरदर्द में पूर्णरूपेण लाभकारी नहीं होता है। अगर चमेली के फूलों से घर में ही तेल बनाया जाय तो वह ज्यादा गुणकारी होता है। तेल को इस प्रकार बनायें- चमेली के ताले फूल एक किलो लेकर उन्हें चटनी की तरह बनाकर उसमें 300 ग्राम तिल का तेल डालकर धीमी आंच में पकायें।

जब चमेली के फूलों की चटनी जल जाये और तेल ही शेष रहे तो उसे आग से उतार लें और ठंडा होने पर उस तेल को छानकर एक शीशी में भर लें और उसमें 10 ग्राम कपूर पीसकर डाल दें। शीशी को अच्छी तरह हिलायें और 5 घण्टे तक धूप में रखें जब कपूर तेल में मिल जाये तो उस तेल को सम्भाल कर रखें। सर में दर्द हो तो इस तेल से सर में मालिस करें, सरदर्द सही होता है।

किसी-किसी व्यक्ति के मुंह में छाले हो जाते हैं, जो अपच या पेट में गर्मी बढऩे के कारण होते हैं, इस स्थिति में चमेली के दस-बारह पत्ते मुंह में डालकर चबायें और वह पत्ते की लुगदी को 15 मिनट तक मुंह में ही रखें। इसके बाद उसे बाहर निकाल दें, तत्पश्चात दो गिलास पानी पियें, इस प्रकार दिन में तीन बार यह प्रक्रिया दोहरायें, दो या तीन दिन में मुंह के छाले सही हो जाते हैं। कान दर्द होने पर फूलों से बनाया हुआ तेल कान में डालने से कानदर्द सही होता है, कान से पानी आना या पीब का बहना भी सही होता है।

चमेली की जड़ को दंातों से चबाने पर दांत दर्द तथा मसूढ़ों का दर्द सही होता है।

चमेली के पंचांग के कल्क में सरसों का तेल डालकर धीमी आंच में पकाकर तेल सिद्ध करें, उस तेल को चर्म रोगों में लगाने से दाद, खाज, खुजली सही होती है, अगर इसमें आंवला सार गंधक डाल दिया जाय तो यह तेल चर्म रोग में अधिक उपयोगी होता है। चमेली के पंचांग में रसोंत डालकर काढ़ा बनायें और सुबह शाम प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में पिये तो कुछ दिनों के सेवन से मासिक धर्म की अनियमितता सही होती है।

घृतकुमारी का तेल, Aloe vera oil

घृत कुमारी का क्षुप दो फुट लम्बा होता है, इसकी जड़ों से सीधे पत्ते निकलते हैं, जो चार पांच इंच तक चौड़े एवं मोटे फलदार होते हैं। इनके पत्तों का रंग हरे कलर का होता है। इनके पत्तों को छीलने पर अन्दर सफेद कलर का ट्रान्सपेरेन्ट गूदा निकलता है जो अधिकांश उपयोग में लिया जाता है, यह दो प्रकार का होता है। एक मीठा स्वाद का तथा दूसरा कड़वा होता है। मीठा घी गुवार ही ज्यादा उपयोग में लिया जाता है। घी गुवार का पूरा पंचाग ही आयुर्वेदिक उपयोग में आता है और अनेक रोगों को ठीक करने की इसमें क्षमता है। यह पेट के रोगों में बहुत ही प्रभावशाली ढंग से कार्य करता है। घृतकुमारी का तेल भी अपने आप में बहुत ही उपयोगी एवं लाभप्रद है। हम आपको घृतकुमारी का तेल बनाने की जानकारी यहां पर दे रहे हैं।

घृतकुमारी का गूदा तीन किलो में 500 ग्राम तिल का तेल डालकर मंद-मंद आंच में पकायें जब सारा गूदा जल जाये और तेल शेष रहे तो उसे एक शीशी में भरकर रख लें। इस तेल की मालिस शरीर में करने से शरीर में कसावट आती है झुर्रियां मिटती हैं, शरीर चमकदार बनता है। चेहरे में इस तेल की मालिस करने पर चेहरे का रूखापन मिटता है, आंखों के नीचे की झाइयां मिटती है। चेचक के दागों में लगाकर मालिस करने से धीरे-धीरे चेचक के दाग हल्के पड़ जाते हैं।

कानदर्द करने पर इस तेल को हल्का गरम कर कान में डाले तो कान का दर्द मिटता है। इस तेल को सर पर लगाने से गर्मी की वजह से होने वाला सरदर्द सही होता है।

अगर इस तेल में घमरा (भ्रंगराज) का रस व कुम्हड़ा का गूदा तथा शंखपुष्पी के पंचांग का रस डालकर आग में पकाकर उस तेल को निकालकर सर में लगाया जाय तो अनिद्रा रोग सही होता है और स्वाभाविक नींद आने लगती है। सर ठंडा एवं तर रहता है आलस्य दूर रहता है।

आंवला का तेल, Amla oil

आंवला एक अत्यन्त गुणकारी फल है। आयुर्वेद में आवंला फल को अमृतफल कहा गया है, इसके गुणों के बारे में समस्त भारतवर्ष के नर-नारी जानते हैं। आंवला एक रसायन की तरह कार्य करता है। इसे त्रिदोष हर माना जाता है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में होती है या यह कहा जाये कि अभी तक की जानकारी में सभी वनस्पतियों में आंवला में सबसे अधिक विटामिन सी पाया जाता है, जो गर्म करने में भी नष्ट नहीं होता है। आंवला मानव शरीर की अधिकांश बीमारियों को दूर करने में सहायक है। आंवला का अचार भी रखा जाता है, जो बहुत ही स्वादिष्ट बनता है और बहुत ही ऊर्जावान एवं गुणों से भरपूर रहता है आंवले की एक खास विशेषता है कि आप ताजे या सूखे आवलें की एक या दो कली दांतों से चबा-चबा कर खायें एवं ऊपर से खारा पानी भी पियें तो भी वह पानी मीठा लगेगा। इसी प्रकार आंवले का तेल भी बहुत ही लाभदायक होता है। आपके सर में गर्मियों की वजह से भयंकर सरदर्द हो रहा हो, तो आवंले के तेल की मालिस सर में करवायें। इससे कुछ ही देर में सरदर्द सही हो जाता है। जिसके शरीर में गर्मियों के दिनों में जलन रहती हो या आखों में जलन रहती हो तो पूरे शरीर में तथा पलकों के ऊपर इस तेल की प्रतिदिन मालिस करने से शरीर की जलन शान्त हो जाती है। आंवले का तेल प्रतिदिन बालों में लगाये तथा हल्के-हल्के उंगलियों से मालिस करें, इससे बालों में हो रही रुसी, बालों का झडऩा व असमय बालों का सफेद होना सही होता है और बाल लम्बे, घने तथा मुलायम बनते हैं। इस तेल को प्रतिदिन बालों में लगायें।

बाजार में आंवले का तेल के नाम से मिलने वाला तेल सही नहीं होता है, उसमें आवलें के गुणों का अभाव रहता है उस तेल में आवले का तेल कम तथा सेन्ट अधिक होता है। इसलिए उचित यही है कि हम आवले का तेल घर पर ही बनायें।

ताजे आवलें का रस एक किलों में तिल का तेल 500 ग्राम मिला कर धीमी आंच में पकायें। जब यह मिश्रण धीरे-धीरे पकते-पकते सारा आवले का रस जल जाये और तेल शेष रहे तो आग से उतार ले और छानकर किसी शीशी में रख लें। इस तेल में 20 ग्राम कपूर  का चूर्ण मिला दें और धूप में रख दें, दो दिन में कपूर उस तेल में मिल जायेगा, तात्पश्चात कोई अच्छा सेन्ट थोड़ा सा उस तेल में डालकर उपयोग करें। यह तेल बहुत ही गुणकारी बनता है और उपयोग करने पर तुरन्त लाभ पहुंचाता है।

नारियल का तेल, Coconut oil

नारियल के विषय में सम्पूर्ण भारतवर्ष अच्छी तरह से जानकार है। नारियल लोगों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसके विषय में भारतवर्ष का बच्चा-बच्चा जानता है। किसी भी त्यौहार में या मन्दिर में पूजन के लिए मुख्य घटक नारियल ही हैं, इसके बिना लोग पूजन अधूरा मानते है। जिस प्रकार धर्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी-देवताओं के पूजन में नारियल का महत्त्वपूर्ण स्थान है उसी प्रकार आयुर्वेद में तथा लोगों के आम जीवन में भी नारियल का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। चाहे खीर हो या बर्फी, नारियल की बहुत ही अच्छी और हैल्दी बर्फी बनती हैं इसी प्रकार नारियल के तेल का एक अपना महत्त्व है।

ज्यादातर नारियल तथा नारियल के तेल की पैदावार दक्षिण भारत व समुद्र के तटीय स्थानों में होता है और यहीं पर ही इसके तेल को खाने और लगाने के उपयोग में ज्यादा लिया जाता है। नारियल के तेल में विटामिन ई की मात्रा भरपूर होती है। यह मधुर बलवर्धक, नेत्ररोगनाशक, बालों को स्वस्थ करने वाला होता है। इसका तेल बालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं। नारियल के तेल में कपूर को डालकर एक घण्टे के लिए धूप में रख दे, जब कपूर पूरी तरह से तेल में घुल जाये, तो उसे छाया में रख दें। प्रतिदिन बालों को मिट्टी या सेम्पू से धोकर एवं सुखाकर इस तेल में नीबू का रस मिलाकर लगाने से बालों का झड़ना सही होता है। बाल पुष्ट एवं हैल्दी होते है। बालों की लम्बाई बढ़ती है, बाल असमय सफेद नहीं होते हैं। बाल स्वस्थ सुन्दर एवं चमकीले दिखते है। बालों की खुस्की मिटती है एवं रूसी सही होती है। बाल लम्बे तथा घने होते हैं। जिन बच्चों के बाल बचपन से ही कम निकलते हैं। अगर वे भी इस तरह से नारियल के तेल को बनाकर लगातार प्रतिदिन बालों में लगाते हैं तो उनके भी बाल लम्बे तथा घने व काले निकलने लगते है।

जिस व्यक्ति की त्वचा रूखी रहती हो, इस तेल की मालिस प्रतिदिन शरीर में करें तो उनके शरीर का रूखापन सही होता है तथा शरीर चमकीला बनता है। सर्दियों में नारियल तेल को होठों एवं गूदी में लगाने से होठों का फटना सही होता है। नारियल तेल में देशी मोम व पीली राल मिलाकर पेस्ट बनाकर पैर की एडियों में लागने से पैर की ऐडियों का फटना सही होता है।

बादाम का तेल, Almond oil

बादाम से आप सभी परिचित हैं यह सूखा मेवा कहलाता है। बादाम की गिरी में भरपूर तेल निकलता है, जो शरीर के लिए बहुत उपयोगी है। बादाम का तेल मंहगा मिलता है। बादाम दो प्रकार का होता है पहला मीठा और दूसरा कड़वा। ज्यादा उपयोग मीठे बादाम के तेल का होता है। बादाम समसीतोष्ण होता है इसलिए सर्दी और गर्मी में समान रूप से उपयोग में लिया जाता है। मीठे बादाम के तेल की शरीर में मालिस करने से शरीर की खुस्की मिटती है। हड्डियां मजबूत होती हैं। शरीर में हो रहे दर्द में आराम मिलता है। बादाम का तेल वात दर्द को दूर करता है।

गाय के दूध में बादाम तेल 5 ग्राम की मात्रा में डालकर प्रतिदिन लगातार लेने से मस्तिष्क की गर्मी कम हो जाती है और मस्तिष्क  कार्यशील बनता है, स्मरणशक्ति बढ़ती है, मस्तिष्क में तरावट आती है।

लगातार बादाम के तेल का सेवन शरीर को स्वस्थ रखता है, कब्ज बनना बन्द होती है, हाजत आराम से आती है, लीवर अच्छे से कार्य करता है, पाचनक्रिया सही रहती है। लीवर स्वस्थ रहता है। कोलेस्ट्रोल कम बनता है। हृदय भी स्वस्थ रहता है। हृदय की उम्र बढ़ती है। ब्लड प्रेशर में आराम मिलता है।

मीठे बादाम के तेल की एक-एक बूंद आंख में डालने से तथा सेवन से आंख स्वस्थ रहती है, दृष्टि स्थिर रहती है। आंखे स्वस्थ रहती है।

बादाम के तेल को बालों में प्रतिदिन लगाने से बाल घने, मुलायम और लम्बे बनते है। बालों का झडऩा रुकता है। बालों की रुसी सही होती है। असमय बालों का सफेद होना रुकता है, बाल स्वस्थ और सुन्दर बनते हैं।

बादाम के तेल की चेहरे पर मालिस करने से आंखों के नीचे की झांइयां सही होती है, चेहरे में चमक आती है, चेहरे का रुखापन मिटता है। बादाम का तेल शरीर में लगाने एवं खाने से शरीर पुष्ट एवं बलवान बनता है।

चिरौंजी का तेल, Mustard oil

चिरौंजी का वृक्ष सारे भारतवर्ष में छुट-पुट पाया जाता है। ज्यादातर मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ साइड के जंगलों में पाया जाता है। यह सूखे मेवे की श्रेणी में माना जाता है। चिरौंजी में तेल की मात्रा ज्यादा रहती है। इसलिए इससे तेल आसानी से निकाला जा सकता है। चिरौंजी मंहगी होने की वजह से घरों में कम उपयोग में ली जाती है। हम यहां आपको कम चिरौंजी से तेल निकालने की विधि बता रहे हैं।

सर्वप्रथम 100 ग्राम चिरौंजी को लेकर उसे खल मूसर में अच्छी तरह से कूट लें या पत्थर के सिल-बटना में अच्छी तरह पीस लें और एक स्टील की थाली में साफ पानी भरकर उसमें चिरौंजी का पिसा हुआ बुरादा मिलाकर कड़ी धूम में रख दें। तीन घण्टे धूप में रहने पर पानी के ऊपर तेल उतरा आयेगा। उस तेल को किसी रुई की सहायता से निकालकर एक शीशी में रख लें। यह तेल बड़ा ही लाभदायक होता है।

चिरौंजी के तेल के बराबर जैतून का तेल मिलाकर प्रतिदिन चेहरे में मालिस करने से असमय पड़ने वाली झुर्रिया मिटती है। चेहरे की सुन्दरता बढ़ती है। चेहरे के दाग-धब्बे सही होते है।

अगर चेहरे में कील मुहासे ज्यादा निकलते हो जिससे चेहरा बदसूरत हो रहा हो तो इस तेल की मालिस कील-मुहासों के बढ़ने को रोकती है, और धीरे-धीरे चेहरे के कील मुहासे सही होने लगते है। ध्यान रहे खाने में सात्त्विक भोजन ही करें। मांस, अंडा ज्यादा तली चीजों का सेवन पूर्णतः रोक दें। जल्दी पचने वाला हल्का खाना ही खाये। कुछ दिन लगातार चेहरे में मालिस करने से चेहरे से कील मुहासे मिट जाते है और चेहरा सुन्दर व चमकीला बन जाता है तथा चेहरे में कसाब आ जाता है।

जिसको सर्दी-जुकाम की शिकायत रहती हो वे व्यक्ति गाय के दूध के साथ चिरौंजी का तेल 10 बूंद व एक ग्राम हल्दी का चूर्ण डालकर प्रतिदिन पिये तो बड़ा ही लाभ होता है। साथ ही छाती में मालिस करनी चाहिये एवं इसी तेल की दो-दो बूंदे नाक में डाले तो जल्दी फायदा होता है।

सरसों का तेल, Linseed oil

सरसों, भारत के लगभग सभी प्रान्तों में कम या ज्यादा पैदा होता है। सरसों के तेल का उपयोग भारतवर्ष में हजारों वर्षों से होता आया है। सरसों के तेल को लाखों भारतीय परिवारों के किचिन में प्रमुखता से देखा जा सकता है। किसी भी तरह की सब्जी बनानी है तो सरसों के तेल की छौक से ही बनती है। किसी भी सब्जी का जो स्वाद सरसों के तेल की छौंक से आता हैं, वह किसी अन्य तेल की छौंक से नहीं आता है, घरों या दुकानों में जो मूंग की मुंगौडी बनती है, वह सरसों के तेल से तली हो तो स्वाद ही बड़ा अच्छा हो जाता है। सरसों के तेल से बनी अनेक चीजें जहां मुंह के स्वाद को अच्छी लगती है वही सर्दी, जुकाम के लिए भी हितकारी है। सरसों का तेल गरम होता है, इसमें विटामिन ए. बी. तथा ई पाये जाते है, इस तेल में ओमेगा 3 तथा 6 भी भारी मात्रा में पाया जाता है। इसमें सैचुरटेड फैट्स की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे ब्लड का कोलेस्ट्राल लेबल सामान्य रहता है, सरसो के तेल में सेंधानमक मिलाकर दांतों व मसूढ़ों में अंगुलियों से मालिस करने पर मसूढे मजबूत होते हैं, दांतों का हिलना तथा पानी लगना सही होता है। पायरिया रोग में भी आराम मिलता है। सरसों के तेल में अदरक तथा लहसुन को पकाकर छाती में मालिस करने पर दमा के रोगी को आराम मिलता है। सर्दी जुकाम की वजह से सांस लेने में होने वाली परेशानी दूर होती है। सर्दियों में दोपहर के समय जब धूप पर्याप्त मात्रा में निकली हुई हो तब पूरे शरीर में सरसों के तेल की मालिस कराके कुछ देर छूप सेके तो पूरा शरीर स्वस्थ बनता है। चमड़ी की खुस्की मिटती है, शरीर सुन्दर और चमकीला बनता है। शरीर का दर्द सही होता, सर्दियों की वजह से होने वाला जोड़ों का दर्द भी सही होता है।

नवजात शिशुओं तथा प्रसूता महिलाओं के शरीर में गुनगुने तेल की मालिस करने पर शरीर और हड्डियां मजबूत बनती है तथा सर्दी जुकाम भी सही होता है। रक्तसंचार सुचारू रूप से चलता है।

सरसों का तेल अगर कच्ची घानी से निकाला हुआ सेवन किया जाय और कपूर मिलाकर बालों में लगाया जाय तो बाल घने, काले, सुन्दर और मुलायम बनते हैं। सरसों के तेल में जंगली तुलसी के कुछ पत्ते जलाकर कान में डाला जाये तो कानदर्द व कान की खुजली सही होती है। बाजार से खरीदा तेल ज्यादातर मिलावटी मिलता है अगर हो सके तो कच्ची घनी का निकला तेल उपयोग करें।

अलसी का तेल, Peanut oil

तेल जहां हमारी रसोई का महत्त्वपूर्ण अंग है वहीं आयुर्वेद में भी इसके माध्यम से अनेक रोगों की चिकित्सा होती है। हमारी रसोई में सब्जी से लगाकर पूरी-पराठे तक सभी बगैर तेल के नहीं बन सकते हैं, इसी प्रकार से शरीर में स्नेहन तेल की वजह से ही आता है चाहे सर के बालों की चमक हो या शारीरिक त्वचा की चमक सभी में तेल या घी की जरूरत पड़ती है।

अलसी के बीजों में ढेर सारा तेल रहता है। अलसी के बीज अनेक औषधीय गुणों से भरपूर है। आपके शरीर में कहीं भी बन्द फोड़ा हो गया हो, तो अलसी के बीजों की पुल्टिस बांधने से फोड़ा फूटकर बह जाता है और घाव जल्दी ही सही हो जाता है। उसी प्रकार अलसी का तेल भी अनेक गुणों से भरपूर है इसमें विटामिन ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आग से जले स्थान पर लगाने से शीतलता मिलती है। दर्द एवं जलन शान्त होती है। हड्डी टूटने के बाद जुडऩे पर भी वहां की मांसपेशियां अकड़ जाती हैं या यह कहें कि जाम हो जाती हैं।

उस परिस्थिति में अलसी के तेल की लगातार मालिस मासपेशियों को मुलायम बनाकर उस अंग को चलने फिरने लायक बना देती है। अलसी के तेल में अदरक का रस तथा कालानमक मिलाकर कमर में मालिस करने पर कमरदर्द सही होता है। डायबिटीज के रोगियों के पैर में घाव हो जाते हैं जो जल्दी भरते नहीं हैं ऐसी स्थिति में अलसी के तेल की मालिस करने से खून संचार सुचारू रूप से होता है एवं घाव भी जल्दी भर जाते हैं।

कच्चीघानी से निकाला हुआ अलसी के तेल में ओमेगा 3 अधिक पाया जाता है, इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम लोहा, कापर, जिंक, प्रोटीन, विटामिन बी आदि अनेकों तत्त्व पाये जाते हैं। जिसमें ओमेगा 3 बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटक हैं। हमारे शरीर में ओमेगा 3 की मात्रा बहुत ही कम हो गई है, जिससे हृदयरोग एवं अन्य अनेकों रोग बढ़ रहे हैं। अगर ओमेगा 3 की मात्रा हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में रहे तो हमारा शरीर अनेकों बीमारियों से बचा रह सकता है। अलसी के तेल के सेवन से अच्छे कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ती है तथा खराब कोलेस्ट्राल घटता है जिससे हार्टअटैक की परेशानी घटती है। अलसी के तेल को पकाकर खाने की अपेक्षा कच्चा खाना ज्यादा श्रेष्ठ होता है इसलिए कच्ची घाणी से निकले तेल का सेवन करना चाहिये। पहले के किसान अलसी के तेल को रोटी में लगाकर खाते थे और स्वस्थ रहते थे।

मूंगफली का तेल, Sunflower oil

गरीबों का मेवा अर्थात मूंगफली। आजकल सूखे मेवा बहुत की महंगे बिकते हैं, जिन्हें केवल पैसे वाले ही इस्तेमाल कर सकते हैं, परन्तु प्रकृति ने गरीबों को भी सूखे मेवे जैसा लाभ प्रदान करने के लिए मूंगफली के रूप में वरदान प्रदान किया है। पौष्टिक, विटामिन व वसा के रूप में तेलीय तत्त्व पाया जाता है। जो रक्त के खराब कोलेस्ट्रोल को नियन्त्रित करता है। मूंगफली के तेल में अनेकों पौष्टिक तत्त्व पाये जाते हैं इसे हृदय रोगी भी सेवन कर सकते हैं। मूंगफली के तेल में सोठ को मिलाकर आग में गर्म कर जोड़ों में लगाने से जोड़ों की सूजन घटती है तथा जोड़ों का दर्द सही होता है। मूंगफली का तेल जीवाणु नाशक होता है, किसी घाव में इस तेल को लगाने से घाव सही होता है। सर्दियों में इस तेल मे गुलाबजल डालकर पूरे शरीर में मालिस करने के बाद एक घण्टा धूप में सेंक करें, इससे शरीर का रुखापन सही होता है शरीर की स्किन सुन्दर एवं चमकीली बनती है।

मूगफली के तेल की चार बूंद को नाभी में प्रतिदिन स्नान के बाद लगाने से होंठों का फटना सही होता है तथा मूंगफली तेल में पीली राल एवं शहदवाली मक्खियां के छत्ते की मोम डालकर आग में गरम कर मलहम बना लें, प्रतिदिन सोते समय पैर की ऐडियों में लगाने से एडियों का फटना बन्द हो जाता है और फटी ऐडियां जल्दी ही सही होकर मुलायम एंव सुन्दर बनती हैं।

सूरजमुखी का तेल, Surajmukhi tel

सूरजमुखी एक वर्ष जीवी पौधा है आजकल इसकी खेती की जाती है। इसका फूल सूर्य की तरह का गोल एवं बड़ा होता है। सूर्योदय के समय इसका फूल खिलता है और सूर्यास्त होने के साथ ही फूल की पंखुडियां बन्द हो जाती हैं। इसके फूल का मुंह सूर्योदय के समय सूर्य की तरफ रहता है और जैसे जैसे सूर्य अपनी गति के अनुसार दिशा बदलता है इसका फूल भी उसी तरह दिशा बदलता है अर्थात सूर्योदय से सूर्यास्त तक इसका मुंह सूर्य की तरह ही रहता है। इस कारण सूर्य की ज्यादा से ज्यादा रश्मि इसके फूल पर पड़ती है, जिससे इसके फूल में अधिकांस अच्छे तत्त्व समाहित होते हैं। सूरजमुखी के फूल में ढेर सारे बीज होते हैं, जिनमें ढेर सारा तेल निकलता है, इस तेल में विटामिन ई प्रचुर मात्रा में रहता है। जो त्वचा के लिए लाभदायक है।

अगर प्रतिदिन शरीर में सूरजमुखी के तेल की मालिस की जाय तो शरीर की नमी बरकरार रहती है और शरीर का रुखापन दूर होता है। त्वचा सम्बन्धी संक्रमण होने का खतरा कम होता है। त्वचा की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिसमें त्वचा पुष्ट एवं चमकीली बनती है।

सूरजमुखी के तेल में मोनो अनसेचुरेटेड और पाली अनसेचुरेटेड फैट भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो हृदय के लिए लाभदायक होता है सूरजमुखी के तेल में लिनोलेइक एसिड की मात्रा होती है, जो हृदय रोगों के बचाव के लिए अच्छा माना जाता है। जिससे हृदय रोगियों को ब्लडप्रेशर की शिकायत कम होती है।

बाजार में मिलने वाले अन्य तेलों व घी में सेचुरेटेड फैट की मात्रा अधिक होती है, जो हृदय रोगियों के लिए नुकसानदायक होती है। सूरजमुखी का तेल खाने एवं लगाने से शरीर को एवं त्वचा स्वस्थ एवं सुन्दर बनाता है। या यह कह सकते हैं अन्य तेलों के उपयोग से होने वाले नुकसन की अपेक्षा यह शरीर को कम नुकसान पहुंचाता है तथा स्वास्थवर्धक कहा जा सकता है। इसीलिए आजकल इसकी खेती कर इसके तेल का उत्पादन अधिक किया जाता है।

अंकोल का तेल, Acol oil

अंकोल का झाड समस्त भारतवर्ष के जंगलों में पैदा होता है। कहीं-कहीं पर पहाड़ों या तालाब की मेड़ों में भी लगा मिल जाता है। इसका झाड 25 से 30 फुट तक ऊँचा होता है। इसकी शाखाओं का रंग सफेद होता है। इसके पत्ते 4 से 6 इंच तक लम्बे तथा लगभग दो इंच तक चौड़े कनेर के पत्तों जैसे होते हैं। इसके फल कच्ची हालत में नीले तथा पकते समय लाल एवं पकने पर बैगनी कलर के हो जाते हैं। इनमें बेर की तरह की गुठली होती है। इन फलों में सफेद रंग का गूदा होता है, जो पकने पर बहुत ही मीठा होता है। इसकी गुठली तोडऩे पर बीज निकलता है, इन्हीं बीजों में विद्युतीय शक्ति से भरपूर तेल होता है। इन बीजों में तेल की मात्रा बहुत ही कम होती है, परन्तु अनेकों आयुर्वेदिक ग्रन्थों में इसके तेल की बहुत ही महिमा लिखी गई है। इसकी सही पहचान एवं उपलब्धता कम होने की वजह से इसका पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता है।

अंकोल का तेल निकालने की विधि

अंकोल के बीजों को कूट पीसकर चूर्ण  बना लें और उसमें तिल का तेल उसके बराबर डालकर धूप में रख दें। एक या दो दिन में वह तेल उस चूर्ण में सूख जायेगा। इसी प्रकार दो या तीन बार तिल का तेल डालकर उस चूर्ण में सुखायें, जब वह चूर्ण तेल को पीना बन्द कर दे तो एक कांच वाले बर्तन में भरकर उसका मुंह बन्द कर दें, प्रतिदिन सुबह सूर्याेदय के समय धूप में रखें एवं सूर्यास्त के समय उठाकर सुरक्षित स्थान पर रखें। इस प्रकार 30 दिन तक करें, इसके बाद एक स्टील की छन्नी में एक कपड़ा बिछाकर ऊपर वह चूर्ण भर दें। किसी स्टील के बड़े डिब्बे में उस छन्नी को रखें। ध्यान रहे कि वह छन्नी डिब्बे की तली से तीन या चार इंच ऊपर रहे। डिब्बे का मुंह अच्छी तरह से बन्द कर धूप में रखें, यह डिब्बा करीब 15 दिन कड़ाके की धूप में रखा रहने दें, पन्द्रह दिन बाद उस डिब्बे को खोलकर नीचे तली में इक्कठा हुआ तेल निकालकर काम में लें।

असमय होने वाली सर की गंज में इस तेल की मालिस बहुत लाभदायक है। सर में इस तेल की लगातार मालिस करने से कुछ दिनों में बाल निकलने लगते हैं। प्रतिदिन इस तेल को सर में लगाने से असमय झड़ने वाले बालों का झड़ना बन्द होता है तथा बाल मजबूत, घने तथा काले हो जाते हैं।

अंकोल के तेल में हल्दी, बेसन तथा नीबू का रस मिलाकर उबटन बनायें और इस उबटन की मालिस चेहरे में प्रतिदिन करने से चेहरे में आंखों के नीचे की झाइयां, दाग मुहासे या चेचक के दाग भी सही हो जाते हैं।

गाय के दूध को गरम करके उसे ठंडा कर लें और उसमें 20 ग्राम शहद एवं 6 बूंद अंकोल तेल की डालकर प्रतिदिन पीने से शरीर बलवान बनता है, शरीर की निर्बलता सही होती है, प्रमेहादि रोग सही होते हैं। कुछ तांत्रिक ग्रन्थों में तो यहा तक लिखा है कि अगर तुरन्त के मृत व्यक्ति के मुंह में इस तेल की कुछ बूंदें डाल दी जाये तो कुछ क्षण के लिए उस मुर्दे में भी चेतना आ जाती है। हलाकि हमने इसका प्रयोग नहीं किया है।

एक जंगली जड़ी बूटियों के जानकार व्यक्ति ने बताया था कि अंकोल के तेल में सरसों के दाने भिगोकर उसमें पानी डाला जाय तो कुछ ही क्षणों में सरसों के दानों से अंकुर निकल आता है। इस तेल में विद्युत शक्ति अधिक है, इसलिए ऐसा संभव भी हो सकता है।

गंधक का तेल, Sulphur oil

गन्धक को संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती, पंजाबी में गंधक ही कहते हैं। अंग्रेजी में सल्फर कहते हैं। गंधक को बहुत प्राचीनकाल से वैद्य एवं हकीम रोग दूर करने के लिए उपयोग में लेते रहे हैं। रसायन कार्यों में गंधक का प्रमुख स्थान है। पारद की किसी भी रस प्रक्रिया में गंधक का उपयोग प्रमुख रूप से होता है। गंधक के उपयोग से शरीर के अनेक रोग सही होते हैं। गंधक वाह्य लेपन एवं आंतरिक सेवन दोनों ही उपयोग में आता है। गंधक का तेल दो प्रकार से उपयोग में लिया जाता है, प्रथम बाह्य उपयोग के लिए जैसे-दाद, खाज, खुजली, गंज आदि चर्मरोगों में मालिस करके लाभ लिया जाता है, दूसरा उपयोग दूध या सम्बन्धित अन्य दवाओं के साथ खाने से वीर्य से सम्बन्धित रोगों एवं शरीर को चमकीला एवं पुष्ट बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

गंधक का तेल निकालने के लिए एक लोहे की कड़ाही में 500 ग्राम आवलासार गंधका का चूर्ण और 100 ग्राम सरसों का तेल डालकर धीमी आंच में चढ़ायें जब सारा गंधक पिघल जाये तो उसे पहले से तैयार रखें मिट्टी के पात्र में गाय का दूध 500 ग्राम डालकर ऊपर महीन कपड़ा बांध दें और पिघला हुआ गंधक धीरे-धीरे डालें। सारा गन्धक मिट्टी के बर्तन में नीचे बैठ जायेगा और तेल दूध के ऊपर उतर आयेगा। उसे नितार कर अलग एक शीशी में रखें।

इसी तरह ऊपर लिखी तेल बनाने की विधि के अनुसार उस दूध से गंधक निकाल कर पुनः पीस लें और कड़ाही में 100 ग्राम सरसों के तेल के साथ डालकर गरम करें और 500 ग्राम दूध में बुझायें यह क्रिया चार बार करें और चारों बार का तेल निकाल कर एक शीशी में रख लें जो बाह्य उपयोग में ले। इस तेल को आंतरिक उपयोग में नहीं लेना चाहिये। इस तेल की शरीर में मालिस करने से दाद, खाज, खुजली जैसे चर्मरोग नष्ट होते हैं। सर में होने वाले फोड़े फुन्सी भी सही होते हैं। जो फोड़ा सही न हो रहा हो तो इस तेल को लगाने से सही होता है।

ऊपर लिखी प्रक्रिया के बाद आन्तरिक उपयोग के लिए उसी गंधक को पुनः ऊपर लिखी विधि से पीसकर कड़ाही में 20 ग्राम गाय के घी के साथ डालकर नये मिट्टी के बर्तन में गाय का 500 ग्राम दूध डालकर उसमें पिघला गंधक डालकर बुझायें और उस दूध में उतरा आये घी को नितार कर दूसरी शीशी में रखें। यह घी आंतरिक उपयोग में लिया जाता है। इस घी की 10 बूंदे 200 ग्राम गाय के मिश्री मिले दूध में डालकर सुबह पियें लगातार कुछ दिन के सेवन से शरीर में कान्ति बढ़ती है, वीर्य से सम्बन्धित रोग सही होते हैं, स्पप्नदोष आदि रोगों में कन्ट्रोल होता है। इस घी को 30 या 60 दिन तक सेवन किया जा सकता है। इसे लगातार सेवन न करें।

मिट्टी का तेल, kerosene oil

इसे हिन्दी में घासलेट, मिट्टी का तेल। अंग्रेजी में केरोसिन ऑयल कहते है। इससे सभी लोग परिचित हैं। गांवों में केरोसिन को लैम्प जलाने के काम में लिया जाता है, खाना बनाने के लिए स्टोव में डालकर जला लेते हैं, जिसमें खाना बनाते हैं। पूर्व में खेतों में पानी लगाने वाले पम्पों के इंजनों को भी केरोसिन से चलाया जाता था। इसके साथ-साथ आयुर्वेद में भी इसका उपयोग होता है। अनेक रोगों में भी केरोसिन का उपयोग लाभकारी सिद्ध हुआ है।

अगर किसी व्यक्ति के हाथ-पैर की गांठों में हमेशा दर्द रहता हो तो 100 ग्राम मिट्टी के तेल में 20 ग्राम कपूर और 20 ग्राम पिपरमिन्ट को डालकर एक बन्द काग वाली बोतल में डालकर धूप में रख दें, एक घण्टा बाद उसे जांच लें कि उसके अन्दर डाली गई सामग्री पूरी तरह से घुली या नहीं, अगर डाली गई सामग्री न घुली हो तो, घुलने तक धूप में रख दें। घुलने की पुष्टी होने पर धूप से हटा लें, जिस किसी रोगी को गांठों के दर्द की शिकायत हो या धर्नुवात की शिकायत हो तो ऐसे मरीज के जोड़ों में या दर्द वाली जगह में रुई के माध्यम से चुपड़ दे और आधा घण्टे धूप में बैठ जायें ऐसा लगातार 5 या 6 दिन करें, इससे जोड़ों का दर्द या धनुर्वात का दर्द सही होता है। अगर दर्द पूरी तरह से सही न हो तो इस दवा को दर्द सही होने तक लगाते रहें। इससे दर्द में आराम मिल जाता है।

छोटे बच्चों को मीठा खाने और दूध पीने की वजह से गुदाद्वार के अन्दर चुननू की शिकायत हो जाती है, ऐसी स्थिति में रुई या कपड़े की बत्ती बनाकर उसे केरोसिन से तर करके गुदा में रखने से चुननू समाप्त हो जाते हैं।

अगर किसी व्यक्ति का कान बहता हो, तो मिट्टी के तेल में जंगली तुलसी के रस को मिलाकर 2 या 3 बूंद लगातार कुछ दिन डालने से कान का बहना सही होता है।

ऐसे रोगी जिनकी पसली लगातार दर्द करती रहती हो वे मिट्टी के तेल में अदरक का रस और जायफल का चूर्ण मिलाकर पसलियों में मालिस करें, धीरे-धीरे दर्द सही हो जाता है।

दांत के दर्द में मिट्टी के तेल में रुई भिगोकर दर्द करने वाले दांत में दबा लें, कुछ ही देर में दांत का दर्द सही हो जाता है, इसका लाभ कीड़े लगे दांत में अच्छा होता है।

सभी प्रकार के चर्म रोगों में मिट्टी के तेल में आंवलासार गंधक को मिलाकर लगाने से बड़ा लाभ मिलता है, सफेददाग के रोगी मिट्टी के तेल में बावची का तेल व आंवलासार गंधक मिलाकर दाग वाली जगह पर प्रतिदिन सुबह शाम लगायें, इससे छोटे-छोटे सफेददाग शरीर के रंग के हो जाते हैं। ऐसी बात एक सन्यासी ने बताई थी हमने इसका उपयोग तो नहीं किया है, परन्तु दवाओं को देखकर ऐसा लगता है कि इसे सफेद दागों में काम करना चाहिये। हमारा मानना है कि अगर इसमें सफेद अकौवा (श्वेतार्क) के पत्तों की भस्म भी मिला दी जाये तो और तेजी से सफेद दागों को सही करेगा।

जंगली तुलसी का तेल, jangli tulsi tel

तुलसी के गुणों के बारे में समाज का प्रत्येक व्यक्ति जानता है। तुलसी का महत्त्व धार्मिक रूप से भी सभी को मालूम है और आयुर्वेद में भी रोगों को दूर करने में तुलसी अद्वितीय है। तुलसी दो प्रकार की होती है जो सफेद और काली कहलाती है। दोनों तरह की तुलसी में लगभग समान गुण पाये जाते है। प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा लगाने से उस घर का वातावरण शुद्ध रहता है। अनेक रोगों के वैक्टीरिया नष्ट होते है, वायु शुद्ध होती है। प्रतिदिन 11 पत्ती तुलसी की खाने से शरीर के अनेक रोग सही होते है। तुलसी का तेल भी अनेक रोगों में लाभकारी हैं। मिट्टी के बर्तन में 50 ग्राम ताजे तुलसी के पत्तों की लुगदी कुटी हुई में 100 ग्राम सरसों का ताजा तेल डालकर धीमी आंच में पकाये, जब सारा रस जल जाये और तेल शेष बचे तो उसे आग से उतारकर एक शीशी में रख लें। जब किसी व्यक्ति के कान में दर्द हो तो चार बूंद इस तेल की रोगी के कान में डाले, कान दर्द सही होता है, दो या तीन दिन लगातार इस तेल को डालें। कान में फुन्सी हो गई हो या किसी चोट की वजह से सूजन आई हो या घाव हो गया हो, सभी सही होते हैं।

इस तेल में नीबू का रस मिलाकर दाद, खाज, खुजली में लगाने से सही होता है। शरीर में कहीं भी चोट लगने से होने वाले घाव में लगाने से वह पकता नहीं है और जल्दी ही ठीक होता है। इस तेल से शरीर एवं चेहरे में मालिस करने से शरीर चमकीला बनता है। चेहरे में सुन्दरता आती है। दाग, धब्बे एवं झाइयां सही होती हैं, मुहासे दूर होते हैं तथा चेहरे में चमक आ जाती है। ध्यान रहे धैर्य के साथ लगातार इस तेल की मालिस चेहरे में करें।

चने का तेल, Chane ka tel

चना का नाम हम सभी के लिए पूर्णतः परिचित है, यह मानव जीवन के लिए उपयोगी खाद्यान्न है तथा शरीर को पौष्टिकता एवं शक्ति देता है, उसी प्रकार इसका आयुर्वेदीय उपयोग भी अनेक वैद्य करते हैं। एक वैद्य ने हमें एक नुस्खा बताया था, जो चर्म रोग (अकौता, एग्जीमा) को सही करने वाला है और वह है चने का तेल। यह चने का तेल अगर अकौता या ऐग्जिमा में धैर्य के साथ लगातार लम्बे समय तक लगाया जाये तो सही होता है। यह तेल बाजार में उपलब्ध नहीं है। इसे तो आपको ही बनाना पड़ेगा। हम आपको इस तेल को बनाने की विधि यहां बता रहे हैं, आप लोग स्वतः ही बनाये।

चने का तेल निकालने की विधि
चने का तेल पातालयंत्र से निकाला जाता है। सर्वप्रथम एक किलो देशी चनों को लेकर पानी में भिगो दें। बारह घण्टे बाद उन चनों को धूप में डाले, तीन घण्टे धूप में सूखने दें। एक मिट्टी के बर्तन में नीचे एक छेद करें, छेद इतना करें कि चना उससे निकल न पायें। उस बर्तन में वह चने भर दें और ऊपर उस बर्तन का मुख किसी ढक्कन से बन्द कर दें। उस बर्तन के मुख में अच्छी तरह कपड़ें को गीली मिट्टी में भिगो कर लपेट दें, जिससे गैस निकल न पायें। इसके बाद जमीन में एक फुट गहरा गड्ढ़ा खोदें। उस गड्ढे की चौड़ाई इतनी रखें कि वह बर्तन उसके मुहाने में रख जाये पर अन्दर न जा सके। उस गढ्ढे में एक बड़ी सी स्टील की कटोरी रख दें और ऊपर वह मिट्टी का बर्तन उस गढ्ढे के ऊपर रख दें और चारों तरफ से नीचे का हिस्सा मिट्टी से बन्द कर दें। उस मिट्टी के बर्तन के ऊपर गोबर के कन्डो को चारों तरफ लगा दें, ध्यान दें कि बर्तन पूरी तरह से कन्डों से ढक जाये। इसके उपरान्त उन कन्डों में आग लगा दें। जब आग जलकर शान्त हो जाये तो उस बर्तन को हटाकर नीचे रखी कटोरी निकाल ले, उस कटोरी में काला-काला गाढ़ा सा तेल इकठ्ठा हो चुका होगा, उस तेल को एक शीशी में रख ले और उस शीशी में 5 ग्राम आंवलासार गंधक का बारीक चूर्ण मिला दें। यही तेल अकौता एवं एग्जीमा में लाभदायक है। रात्रि को सोते समय इन चर्मरोगों में इस तेल को लगाकर सो जायें तो कुछ दिन के लगातार लगाने से ये चर्मरोग सही हो जाते हैं।

लहसुन का तेल, Garlic oil

लहसुन एक बहुत ही गुणकारी वनस्पति है इसका ज्यादातर उपयोग घर में साग-सब्जी बनाने के मसाले में अधिक उपयोग होता है। लहसुन प्रायः हर घर में मिल जायेगी, इसकी खेती सारे भारतवर्ष में की जाती है। लहसुन एक बहुत ही गुणकारी वनस्पति है, इससे अनेक रोग दूर होते हैं। यह शरीर में रसायन की तरह कार्य करती है। इसका तेल अनेक रोगों में उपयोगी है। हम यहां लहसुन का तेल बनाने की जानकारी दे रहे है। सर्वप्रथम लहसुन की कलियां 250 ग्राम को छीलकर उसकी लुगदी बना लें। एक स्टील के बर्तन में 250 ग्राम सरसों का तेल व लहसुन की कुटी हुई लुगदी डालकर धीमी आंच में पकाये। जब यह लहसुन पूरी तरह से जल जाये और तेल शेष रहे तो उतार कर एक शीशी में भरकर रख लें। यही तेल अनेक रोगों में लाभकारी है।

बात रोगों में इस तेल की मालिस एवं 15 बूंद तेल गाय के दूध में डालकर सुबह-शाम खाने के बाद पियें तो वायु से सम्बन्धित सभी बात विकार सही होते हैं। यह तेल तुरन्त के लकवा ग्रसित व्यक्ति को भी लाभ पहुंचाता है, शरीर के किसी भी अंग में आई शून्यता को भी सही करता है। पेट में बन रही गैस एवं गैस से होने वाले दर्द को भी यह तेल शान्त करता है। शरीर में होने वाली खुजली एवं फोड़े-फुन्सी भी इस तेल की मालिस से सही होती है।

किसी भी चोट की वजह से होने वाले जख्म को या फोड़े में इस तेल को लगाने से वह जख्म पकता नहीं है। उसमें मवाद नहीं पड़ता है तथा जल्दी ही सही भी हो जाता है। यह तेल जन्तुनाशक है। लहसुन का तेल टी.वी. के रोगी को भी लाभ पहुंचाता है। प्रतिदिन दोनों कानों में इस तेल की कुछ बूदें डालने से कान दर्द एवं बहरापन सही होता है। लहसुन का सेवन कामोद्यीपक भी है। सर्दी जुकाम श्वांस में इसके तेल की मालिस गले एवं छाती में करने व लहसुन की कलिया गाय के दूध में उबाल कर खाने से लाभ मिलता है।

अरण्डी का तेल, Castor oil

अरण्ड दो प्रकार का होता है। बड़ी जाति के अरण्ड को पारस अरण्ड कहते हैं और छोटी जाति के अरण्ड को अरण्डी कहते हैं। पारस अरण्ड के बीज बड़े होते हैं और उनमें बहुतायत से तेल निकलता है, जिन्हें जलाने के काम में लिया जाता है। आजकल डीजल के अभाव में इसका उपयोग करने की बात चल रही है, अनेकों परीक्षण हो चुके हैं और गाड़ियों में उपयोग करके देखा गया है। इसके तेल से गाड़ियां चलाने की प्रक्रिया चालू हो चुकी है। जरूरत है, बहुतायत से इसकी खेती करके इसके तेल की पैदावार बढ़ाने की जिससे डीजल के अभाव में इसके तेल का उपयोग किया जा सके, इसका तेल औषधीय उपयोग में नहीं आता है।

छोटी अरण्ड के बीजों का तेल औषधीय उपयोग में आता है, जो बाजार में कैस्टर ऑयल के नाम से जाना जाता है। इस तेल का सेवन अनेक रोगों में लाभदायक है। आयुर्वेद में इस तेल को उत्तम जुलाब की तरह देते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पेट में कब्ज बहुत अधिक बढ़ गई हो या मल सूख गया हो जो निकल ही नहीं रहा हो तो गाय के दूध को गुनगुना करके उसमें एरण्ड आयल 4 चम्मच डालकर पिलायें तो पेट साफ हो जाता है। बवासीर के मरीज को कब्ज अक्सर रहता है, जिससे परेशानी बढ़ी रहती है। हर सप्ताह 2 चम्मच एरण्ड ऑयल को गुनगुने दूध में डालकर रात्रि में सोते समय पीने से पेट साफ हो जाता है और बवासीर की परेशानी भी कम होती है।

पेट से सम्बन्धित अनेक परेशानियों में यह लाभदायक है, पेट में गैस बनना, भूख न लगना, पेट में दर्द होना, आंतों में सूजन, कब्ज आदि में परेशानी होने पर इस तेल का सेवन लाभकारी होता है। इसके सेवन से पेट साफ रहता है, कब्ज बनना बन्द होता है और भूख खुलकर लगती है। इस तेल को हल्का गुनगुना करके बालों में मालिस करने से बालों का असमय झडऩा बन्द होता है। बाल मजबूत और चमकीले बनते हैं। त्वचा में मालिस करने से त्वचा का रंग निखरता है और त्वचा चमकीली बनती है।

बेसन, जौ का आटा, अरण्डी का तेल इनको मिलाकर पानी के साथ उबटन बनायें, उस उबटन में नीबू का रस मिलाकर सारे शरीर में मालिस करें तो इससे शरीर का रंग साफ होता है।

आंख में किरकिरी चले जाने पर एक-एक बूंद अरण्डी का तेल आंखों में डालें, इससे आंख की आयलिंग हो जायेगी, किरकिरी आंख के किनारे आ जायेगी तथा आंख से पानी आकर आंख साफ हो जायेगी।

छोटे-छोटे बच्चों की आंतों में मल जम जाता है जिससे उन्हें दस्त आने लगते हैं। अरण्डी के तेल की कुछ बूंदे दूध के साथ देने पर पेट साफ हो जाता है तथा पेट दर्द आदि सही हो जाता है।

पवार (चकौडा) का तेल, Pawar oil

एक मिट्टी के बर्तन में 500 ग्राम सरसों का तेल और एक किलो पवार के पंचाग का रस (पत्ता, तना, फल, फूल, जड़) डालकर धीमी आंच में चढ़ायें। जब धीरे-धीरे पकता हुआ पूरा रस जल जाये और तेल शेष रहे तो आग से उतार कर एक कांच की शीशी में भरकर रख लें। दाद, खाज, खुजली का रोगी इस तेल की मालिस पूरे शरीर में रात्रि में सोते समय करें। तो कुछ दिन के प्रयोग से दाद, खाज, खुजली सही होती है।

एग्जिमा और अकौता के रोगी इस तेल को सुबह शाम लगायें तथा साथ में चकौड़ा की पत्ती का साग बनाकर खाये इससे कुछ दिन में आराम मिल जाता है।

जिसकी चमड़ी मोटी हो गई हो, तो इस तेल के लगातार लगाने से एवं 1 ग्राम की मात्रा में चकौड़ा के बीज का पिसा हुआ चूर्ण पानी के साथ कुछ दिन खाने से चमड़ी पतली हो जाती है।

सर्दी-जुकाम के मरीज गाय के दूध में 20 बूंद इस तेल को डालकर सुबह पियें तथा साथ में छाती एवं पीठ में इस तेल की मालिस करें। कुछ दिन के प्रयोग से शिकायत दूर होती है।

बात रोग में इस तेल की मालिस करके हल्का-हल्का सिंकाई करे और इसके बीजों का चूर्ण 2 ग्राम सुबह एवं 2 ग्राम चूर्ण रात्रि में सोते समय गर्म पानी से लगातार सेवन करने से गठियारोग में आराम मिलता है, इसके साथ ही बदनदर्द में भी लाभ मिलता है।

अनिद्रा नाशक तेल, Anindra Nashak oil

बहुत से भाई एवं बहनों को नींद कम आना, रात्रि में एक या दो घण्टे की ही नींद आना या नींद के लिए एलोपैथिक दवाइयों का सहारा लेना। इन सबके लगातार चलने पर व्यक्ति के मस्तिष्क को पूर्ण आराम नहीं मिल पाता है, और वह भविष्य में उन्मादरोग से ग्रसित हो जाता है, तथा पागलपन के दौरे पडऩे लगते हैं।

स्वाभाविक नींद मस्तिष्क को पूर्ण आराम पहुंचाती है और व्यक्ति पूर्णतः स्वस्थ एवं उसका मस्तिष्क पूर्ण रुपेण कार्य करता है। परन्तु जब स्वाभाविक नींद आना कम हो जाती है, तो मनुष्य तनाव ग्रस्त रहने लगता है और सोचने समझने की शक्ति क्षीण होने लगती है।

एलोपैथिक दवाइयों का सेवन कर नींद लेने पर सुबह शरीर में दर्द एवं जकडऩ रहती है। बिस्तर से उठने की इच्छा नहीं होती है और पूरा दिन सुस्ती से भरा रहता है, काम में पूर्णतः मन नहीं लगता है, चिड़चिड़ापन छूटता है, व्यक्ति दिन भर तनावग्रस्त रहता है। नींद की गोलियां लगातार लेने से व्यक्ति की स्मरणशक्ति कमजोर होने लगती है तथा आत्महत्या की इच्छा जाग्रत होने लगती है और अन्त में पागलपन के दौरे पडऩे लगते हैं।

इन सबका कारण मस्तिष्क में सामान्य से अधिक गर्मी बढ़ जाना है। जिससे मस्तिष्क को आराम नहीं मिल पाता है। हम आपको नीचे निद्रा नाशक तेल के बारे में जानकारी दे रहे हैं, इसे आप बनाकर लाभ उठायें।

तेल बनाने की विधि

भ्रंगराज (घमरा) का रस एक किलो, घृतकुमारी का गूदा एक किलो, सफेद कुम्हड़ा का रस एक किलो, शंखपुष्पी का रस 250 ग्राम, ब्राह्मी का रस 250 ग्राम, (ब्राह्मी ताजी न मिलने की स्थिति में सूखी ब्राह्मी 250 ग्राम को 400 ग्राम पानी में भिगो दें और 24 घण्टे बाद उसे अच्छी तरह से पीसकर उसका रस निकाल लें और उसका उपयोग करें) तिल का तेल एक किलो, इन सभी सामग्री को एक स्टील के भगोने में डालकर धीमी आंच में पकायें। जब यह सारी सामग्री जल जाये और तेल शेष रहे तो इसमें 50 ग्राम भीमसेनी कपूर मिला दें और एक कांच की शीशी में रखे। रात्रि में सोते समय सर के बालों में यह तेल लगायें। तेल अंगुलियों के पोरो से बालों की जड़ों में लगाकर हल्के हांथ से मालिस करें। थोड़ा तेल मस्तिष्क में भी लगाये।

कुछ दिन के उपयोग से आपको स्वाभाविक नींद आने लगती है। अनिद्रारोग दूर होता है। नींद की गोली खाने की जरूरत नहीं पड़ती है। गर्मी की वजह से होने वाला पुराने से पुराना सरदर्द सही हो जाता है। पागलपन के दौरे धीरे-धीरे सही होते है। स्मरणशक्ति बढ़ती है। कुछ दिन के उपयोग से स्वाभाविक नींद आने लगती है।

नोट- ध्यान रहे इस तेल के अधिक उपयोग से सर्दी, जुकाम की शिकायत हो सकती है। इसलिए सर्द प्रकृति के लोग इस तेल का उपयोग कम करें।

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