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ऋतु चर्चा, Seasonal discuss-

बसंत ऋतु

ऐसी ऋतु जिसमें न सर्दी की अधिकता हो न ही गर्मी की तपिस, उस ऋतु को हम बसन्त ऋतु कहते हैं। इस ऋतु में समशीतल मंद सुगंन्धित पवन बहने लगती है। आमों के पेड़ो में बौर आ जाती है। पेड़ो के पुराने पत्ते झड़ कर नवीन पत्ते, पुष्प तथा रस भरे फल आने लगते हैं। मानव मन प्रसन्नचित होने लगता है। परन्तु इस ऋतु चक्र के परिवर्तन के समय मानव को अपने खान-पान में थोड़ा बदलाव करने की जरुरत होती है। क्योंकि प्रत्येक ऋतु की अपनी एक विशेषता होती है और उसी के अनुसार हमें अपने खान-पान में परिवर्तन करना चाहिये जिससे हमारा शरीर लम्बे समय तक स्वस्थ और निरोगी रह सके।
आयुर्वेद के अनुसार हमारा शरीर तीन तत्वों (वात, पित्त, कफ) के सामान्जस्य से स्वस्थ व निरोगी रहता है और जब इन तत्वों के सामन्जस्य के बीच असंन्तुलन आता है तभी हमारे शरीर में अनेकों तरह के रोगोंका आक्रमण होता है।
इन ऋतुओं के सन्धिकाल अर्थात एक ऋतु की विदाई तथा दूसरी ऋतु के आगमन के बीच के समय को सन्धिकाल के रुप में मानते हैं और इस ऋतु परिवर्तन के चक्र के बीच में शरीर में स्थित वात, पित्त, कफ में भी कुछ परिवर्तन आता है। जब शिशिर ऋतु जा रही होती है और बसन्त ऋतु आ रही होती है तो उस समय कभी ठण्ड होती है तो कभी गर्मी तथा कभी समसीतोष्ण वातावरण होता है जिससे मानव शरीर में सदी-गर्मी दोनों का प्रभाव जल्दी-जल्दी पड़ता है इस कारण शरीर में हरारत, बदन दर्द तथा कफ कुपित होता है जिससे शरीर अस्वस्थ हो जाता है उस परिस्थिति में कफ को बढ़ाने वाले गरिष्ट तथा शीतल पदार्थो, ज्यादा तले हुए, घी से बने पदार्थ, मांस, अंडा, शराब का सेवन नही करना चाहिये।
बसन्त ऋतु में शरीर में पड़ने वाले सर्द-गर्म के प्रभाव की वजह से पाचनक्रिया मन्द हो जाती है जिससे खाया हुआ भोजन देर से पचता है उस परिस्थिति में हमें ताजा, हल्का तथा जल्दी पचने वाला भोजन ही लेना चाहिये। हरी सब्जियाँ, सलाद, सरसों का साग, मौसमी फल तथा गर्म दूध में हल्दी डाल कर लेना हितकारी रहता है। छोटी हरड तथा पिप्पली का चूर्ण सुबह व शाम को पानी के साथ लें जिससे शरीर की जठराग्नि बढ़ेगी साथ ही अदरक का रस शहद के साथ लें या सितोपलादि चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम चाटें इससे कफ निकल जाता है। और कफ का प्रकोप सही होता है‘ जिससे शरीर पुनः स्वस्थ और निरोगी बन जाता है।

वर्षाऋतु

आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ जीवन जीने के लिए हमें ऋतु के अनुसार खान-पान में ध्यान रखना चाहिए। ऋतुओं के अनुसार खान-पान की दिनचर्या निश्चित करने से हम ज्यादा स्वस्थ एवं निरोगी रह सकते है। अर्थात् उन ऋतुओं में होने वाले रोग उन्हें नहीं सताते है।
वर्षा काल में अधिक बरसात के कारण शरीर गीला रहता है, जिसके कारण शरीर में जलीय गुण की अधिकता रहती है, इससे शरीर की पाचक अग्रि मंद हो जाती है, परिणाम स्वरूप ग्रहण किये गए आहार का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है। आचार्य चरक के अनुसार वर्षाऋतु में वात, पित्त, कफ तीनों दोष कुपित हो जाते हैं। इन परिस्थितियों में आहार-विहार का विशेष ध्यान रखें। जल्दी पचने वाले आहार का सेवन लाभदायक है। खाने के साथ भुना जीरा व काला नमक युक्त छाछ पीना जठराग्रि को तीव्र करता है। इसलिए बरसात में छाछ सेवन करना चाहिए।
ध्यान रहे दही का सेवन न करें। भोजन के समय अदरक, हरीमिर्च, लहसुन व नीबू का उपयोग पाचनक्रिया में सुधार करता है।
बरसात में फल एवं सब्जियां धोकर ही उपयोग करें क्योंकि इनमें मिट्टी, कीड़े आदि चिपके रहते हैं, जो शरीर को नुकसान दायक होते हैं। सब्जियों में परवल लौकी, कुम्हड़ा, तोरई, चिचिण्डा, भिण्डी आदि का सेवन अच्छा रहता है। ये सब्जियां जल्दी पचती है। इनके खाने से गैस आदि कम बनती है।
मौसमी फलों में आम और जामुन बहुत ही लाभदायक रहते हैं। आम से शरीर को भरपूर विटामिन मिलती है तथा जामुन उदर विकारों को नष्ट करता है। वर्षाऋतु में बरसात के कारण पानी मटमैला एवं जीवाणु युक्त हो जाता है, जो अनेक रोगों को उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाता है इस कारण पानी को उबालकर पीना चाहिए।
वर्षाऋतु में नदी एवं तालाब का पानी नहीं पीना चाहिए तथा धूप में घूमना एवं दिन में सोना नुकसानदायक है। बरसात के मौसम में ज्यादा पानी में भीगना नुकसानदायक है इससे बचें। घर से निकलते समय छाता लेकर निकले और अगर भीग ही जाये तो जल्दी घर आकर पूरे शरीर को सूखे तौलिये से पोंछ लें। वर्ना सर्दी-जुकाम पकड़ लेता है, प्रतिदिन सुबह दो कालीमिर्च दांतों से चबाकर खाने से सर्दी-जुकाम का खतरा कम हो जाता है।
वर्षा काल में जगह-जगह पानी भरने के कारण मच्छर जल्दी पैदा होते हैं, ऐसी स्थिति में मलेरिया टाइफाइड होने का खतरा ज्यादा रहता है। दूसरा कारण दूषित पानी और भोजन से भी यह परिस्थिति उत्पन्न होती है। अतः दूषित पदार्थों के खाने से बचें और मच्छरदानी का प्रयोग कर मच्छरों के प्रकोप से बचें। और प्रतिदिन हल्का व्यायाम करें और पूर्ण स्वस्थ रहें।

वर्षा ऋतु में क्या खायें, क्या न खायें-

परिवर्तन के चक्र में एक ऋतु के जाने तथा दूसरी ऋतु के आगमन के बीच में एक सन्धिकाल होता है, जो दोनों ऋतुओं को जोड़ता है और इसी सन्धिकाल में शरीर के अन्दर भी उतार-चढ़ाव आते हैं, जिससे शरीर में अनेकों परेशानियां भी उत्पन्न होती हैं, ऐसी परिस्थिति में हमें अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है, क्योंकि गर्मी के मौसम में हमारे शरीर की पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। हमारे पेट की जठराग्रि कमजोर होने से पाचन क्रिया प्रभावित होती है। इसके साथ ही जब वर्षा ऋतु का आगमन होता है, तो हमारे पेट की जठराग्रि और कमजोर हो जाती हैं। इन परिस्थितियों में हमें अपने खान-पान में विशेष ध्यान देने की जरूरत पड़ती है।

क्या खायें-

1. वर्षा ऋतु में हल्का एक सुपाच्य आहार ही लें। पुराने गेहूँ तथा जौ के आटे की रोटी, पुराने चावल का भात, परवल, लौकी, कद्दू, तोरई, पपीता आदि की सब्जी तथा छिलके वाली मूंग की दाल या अरहर की दाल, आदि का प्रतिदिन सेवन करें।
2. बरसात में जल दूषित हो जाता है इसलिए जल को उबालकर या शुद्ध किया हुआ जल ही सेवन करें।
3. वर्षा ऋतु के आरम्भ में पके आम और दूध का सेवन लाभदायक है। मौसमी फल जामुन, पका पपीता, आलू बुखारा, नाशपाती आदि का सेवन भरपूर मात्रा में करें। इससे अनेकों तत्त्वों की पूर्ति होती है और शरीर निरोगी बनता है।
उदर विकारों में जामुन, पपीता बहुत लाभदायक होता है। पाचनक्रिया सही होती है और भूख खुलकर लगती है।
4. वर्षा ऋतु में तीनों दोषों को सम रखने के लिए शहद का उपयोग अवश्य करें। ध्यान दें नकली या मिलावटी शहद का सेवन नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए असली शहद का सेवन ही लाभदायक सिद्ध होता है।
5. छोटी हरड और सेंधा नमक का चूर्ण दिन में एक बार पानी के साथ सेवन अवश्य करें। पंचकोल (सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पिप्पली, चव्य, चित्रक) एक चम्मच खाने के बाद पानी के साथ लेने से पाचनक्रिया सुधरती है या अदरक को सेंधा नमक के साथ खाने के साथ सेवन करने से भी पाचन क्रिया सही होती है एवं वात तथा कफ को कम करती है।
6. गौमूत्र अर्क प्रतिदिन 10 ग्राम की मात्रा में लेने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और उस समय होने वाले रोग अपना प्रभाव नहीं दिखा पाते हैं। अगर हो सके तो 5-7 पत्ती तुलसी के पत्तों का सेवन नित्य करें।

क्या नहीं खायें-

1. पत्ते वाली तरकारी का सेवन न करें क्योंकि सूक्ष्म जन्तु इनमें पनप जाते हैं, जो शरीर को अनेक रोगों से प्रभावित करते हैं।
2. गरिष्ट खाद्य पदार्थ या बादी सब्जियों का सेवन न करें जैसे, अरबी, बैगन, पत्तागोभी, उर्द की दाल आदि।
3. प्रदूषित जल का सेवन बिल्कुल न करें।
4. तली चीजें, चाट, सड़क के पास ठेले में बिकने वाले समोसे, कचौरी, आलू बंडे का सेवन न करें।
5. बासी एवं खराब हुआ खाना न खायें। यह शरीर को नुकसान करेगा।
6. वर्षा ऋतु में पानी से भीगने पर तुरन्त पूरे शरीर को सूखे तौलिये से सुखाकर सूखे कपड़े पहनें।
7. बरसात में मच्छर ज्यादा बढ़ जाते हैं, इनसे अपना बचाव करें, मच्छरदानी का उपयोग कर सकते हैं।
8. मांसाहार तो बिल्कुल न करें। अण्डा, मांस, मछली का सेवन बिल्कुल न करें, यह शरीर एवं मन के लिए पूर्णतः हानिकारक है। यह जहां पाचन क्रिया को कमजोर बनाता है। वहीं मन को भी दूषित बनाता है। इसके खाने से हिंसक भाव जाग्रत होते हैं। अतः इसका सेवन कभी नहीं करना चाहिये।

ग्रीष्म ऋतु

गर्मियों में भी तरोताजा रह सकते हैं-

प्रकृति के नियमानुसार एक ऋतु जाती है तो दूसरी आती है। अभी सर्दी की ऋतु जा रही है तो गर्मी की ऋतु आने को तैयार है। ऋतु के अनुसार हम अपने खान-पान एवं रहन-सहन में परिवर्तन करके तरोताजा रह सकते हैं।
पानी ज्यादा पियें- गर्मी की ऋतु में थोड़ा भी परिश्रम करने से शरीर से पसीना निकलकर पानी की मात्रा कम होने लगती है जिससे शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और थकान एवं उलझन होने लगती है, काम में मन नहीं लगता है। इसलिए हमें अपने शरीर में पानी की पूर्ति एवं अन्दरूनी सफाई के लिए पानी अधिक से अधिक पीना चाहिये। पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से खुलकर पेशाब आती है और अन्दर के दूषित तत्व निकल जाते हैं। शरीर से निकलने वाले पसीना के माध्यम से भी दूषितक्षार निकल जाते हैं। शरीर की गर्मी-सर्दी मेन्टेन रहती है। लीवर की पाचनक्रिया सन्तुलित रहती है। पर्याप्त मात्रा में शरीर में पानी रहने से लू नहीं लगती है।
खाना हल्का खायें- सर्दियों की अपेक्षा गर्मी के मौसम में खाना हल्का, पौष्टिक एवं जल्दी पचने वाला खाये। खाना ज्यादा गर्म, ज्यादा नमक-मसाले युक्त, गरिष्ठ एवं तला हुआ न खायें, खाने में कच्चे आम, प्याज, धनिया पत्ती तथा पुदीने की चटनी लें, इससे शरीर एवं मस्तिष्क ठंडा रहता है। लू नहीं लगती है। अगर किसी को लू लग जाये तो इन्हीं उपायों से सही भी हो जाती है। सलाद में खीरा, ककड़ी पके लाल टमाटर, प्याज काटकर उसमें नमक व भुना जीरा पीसकर बुरके, इससे खाना अच्छी तरह पच जाता है, गैस नहीं बनती है और भूख भी खुल कर लगती है। गाय के दूध के छाछ में पिसा हुआ जीरा नमक मिलाकर पीने से शरीर की गर्मी दूर होती है एवं मस्तिष्क में तरावट आती है गर्मियों में होने वाली परेशानी कम होती है। पेट में गैस नहीं बनती है तथा पखाना खुलकर आता है।
घरेलू पेय जरूर लें- नीबू पानी, नारियल पानी, खस या चंदन का शर्बत, देशी ठंडाई, जिसमें सौंफ, कालीमिर्च, खीरा एवं ककड़ी के छिलका रहित बीज, खस खस के दाने, धनिया, गुलाब के फूल, छोटी इलायची के दाने, कमल गट्टे के छिलका रहित बीज रहते हैं। का शर्बत पीना चाहिये, इससे मस्तिष्क में तरावट आती है, शरीर की थकान मिटती है गर्मी में होने वाली थकावट तथा सरदर्द मिटता है।
बाजार में बिकने वाले कैफिन युक्त चीजें व कोल्ड्रिंक्स ज्यादा मात्रा में नहीं लेना चाहिये ये हानिकारक होते है इनमें प्रिजनरैटिव, रंग कृतिम ऐसेन्स एवं कैमिकल रहते हैं जो शरीर को हानि पहुंचाते हैं। बाजार में बिकने वाले फलों का रस न पिये, इसकी अपेक्षा ताजे फल एवं इनका रस जरूर लें, सीजनल फल अवश्य खायें। इससे शरीर का तापमान सामान्य रहता है और गर्मी की वजह से होने वाली कमियां दूर होती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है।

नशा एवं मांसाहार मुक्त रहें-

नशें एवं मांस का सेवन पूर्णतः बन्द कर दें क्योंकि इससे लीवर की पाचन शक्ति क्षीण पडऩे लगती है एवं शरीर का संतुलन बिड़ता है। प्रकृति ने हमें खाने के लिए अनेकों तरह के खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराये है, जिनसे शरीर स्वस्थ एवं निरोगी रहता है इसलिए हमें किसी पशु-पक्षी का वध करने की जरूरत नहीं है। अगर हम किसी को जीवन दान नहीं दे सकते हैं तो हमें उसे मारने का भी हक नहीं है।
गर्मी के मौसम में स्वास्थ रक्षा के उपाय-
आयुर्वेद के अनुसार गर्मी की ऋतु 15 मई से 15 जुलाई मानी जाती है परन्तु हमारे देश के अधिकांश भागों में गर्मी का प्रभाव अप्रैल माह से ही दिखने लगता है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणें अत्यंत तेज होकर जगत के अधिकांश जलीयांस को सोख लेती है तथा हवाये भी अत्यन्त रुक्ष होकर तेज चलने लगती है, जो बचे हुये जलीयांस को सोखती हैं।
गर्मी के मौसम में मनुष्य का कफ दोष कम होने लगता है एवं जल भी मनुष्य शरीर से कम होने लगता है। शरीर में बेचैनी बढ़ने लगती है। गला सूखने लगता है तथा ज्यादा प्यास लगने लगती है।
गर्मी के मौसम में पित्त दोष कुपित होकर अनेक पित्तज रोगों को उत्पन्न करता है। जठराग्रि मन्द होने लगती है। भूख कम लगती है तथा भोजन ठीक से पचता नहीं है, परिणामस्वरूप अजीर्ण, उल्टी, दस्त आदि रोग उत्पन्न होने लगते है। ऐसी अवस्था में जल्दी पचने वाले आहारों का सेवन ही हितकर रहता है।
गर्मी के मौसम में पानी अधिक से अधिक पीना चाहिए क्योंकि शरीर का अधिकांश जलीय तत्व पसीने के रूप में निकलकर पानी की कमी पैदा करता रहता है। अतः इस ऋतु में पानी अधिक से अधिक पियें। अगर हो सके तो मटके का ठंडा पानी पिये, सेहत के लिए अच्छा रहता है। फ्रिज का ठंडा पानी तुरन्त न पियें उसे कुछ देर बाहर रखकर नार्मल करें इसके बाद ही पियें।
गर्मी के मौसम में धूप से तपे शरीर को प्यास लगने पर तुरन्त ठंडा पानी न दें। थोड़ी देर छाया में आकर थोड़ा सुस्ताकर ही पानी पियें अन्यथा गले में खरास, सर्दी-जुकाम होने का खतरा रहता है।
गर्मी के मौसम में लू से बचने के लिए पानी अधिक पियें। जब भी घर से निकले पानी पीकर निकलें, साथ ही थर्मस में पानी साथ रखें, थोड़ी-थोड़ी देर में पानी पियें। शरीर में पानी की पूर्ति करते रहें, इससे लू लगने का खतरा नहीं रहता है।
गर्मी के मौसम में जठराग्नि कमजोर हो जाती है, इसका प्रभाव पाचन क्रिया पर पड़ता है। गरिष्ठ एवं तले हुये आहार का सेवन कम से कम करें। इसकी अपेक्षा हल्के एवं पानी युक्त भोजन का आहार ज्यादा उपयोग रहता है। आहार के साथ मौसमी सलाद का सेवन अवश्य करें। सलाद में खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज, संतरा, आम का सेवन करें साथ ही प्याज पुदीना आम की चटनी गर्मियों में बहुत उपयोगी है। इसके सेवन से पाचन क्रिया सही रहती है तथा शरीर का तापमान सामान्य होता है। लू लगने की सम्भावना कम होती है उल्टी, दस्त नहीं होती है।
मई, जून में गर्मी का प्रकोप चरम सीमा में होता है। चारों तरफ सूर्य की प्रखर किरणों का राज होता है। गर्मी से शरीर में जलन सी होने लगती है। शरीर में बेचैनी रहती है। बाहर तेज गर्म हवायें चल रही होती हैं। ऐसी स्थिति में जब भी घर से निकलें तो ज्यादा से ज्यादा पानी पीकर ही निकलें, साथ ही एक प्याज की गांठ को अपनी जेब में रख लें, इससे लू लगने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है। गर्मियों में दिन में ठोस आहार कम एवं तरल आहार ज्यादा लें। ठंडाई पियें, पुदीना आम की सिकंजी पियें, इससे शरीर में तरावट एवं ताजगी आयेगी, कच्चे आम का पना पीना शरीर की गर्मी को कम करता है। पके आप, सन्तरा का सेवन गर्मी को सन्तुलित करता है।

शीत ऋतु 


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