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वायु तत्त्व चिकित्सा

वायु तत्त्व चिकित्सा, Wind elements treatment

वायु तत्त्व चिकित्सा, Wind elements treatment

वायु जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। रंगहीन एवं अदृश्य होने की वजह से वायु को आंखों से देखना सम्भव नहीं है। इसे तो अनुभव किया जा सकता है। वायु में ऑक्सीजन 20.94 प्रतिशत, नाइट्रोजन 78.08 प्रतिशत, कार्बनडाई ऑक्साइड 0.04 प्रतिशत एवं अन्य गैसें 0.94 प्रतिशत होती हैं। साथ ही अलग-अलग जगहों के तापमान की वजह से इसमें अलग-अलग मात्रा में वाष्पकणों का समावेश भी रहता है।
मनुष्यों जीव-जन्तुओं तथा पशु-पक्षियों को हर क्षण ऑक्सीजन की जरूरत रहती है। ऑक्सीजन न मिलने की स्थिति में जीवन समाप्त हो जाता है। वायु में ऑक्सीजन की उपस्थिति हमारे प्राणों की रक्षा करती है।

शुद्ध वायु जीवन का आधार-

महानगरों के वायुमण्डल में कार्बनडाइऑक्साइड, अमोनिया, कार्बन मोनो ऑक्साइड और विभिन्न कारखानों से निकली दूसरी गैसें भी मिली रहती हैं, जिसकी वजह से हमें श्वांस लेने में घुटन सी महसूस होती है और जब हम खुले वातावरण में आते हैं, तो हमें अच्छा महसूस होता है।
शुद्ध वायु हमारे जीवन का आधार है तथा दूषित वायु में जीवाणु अधिक पनपते हैं। वायु प्रदूषण संक्रामक रोगों का जन्मदाता है। बन्द कमरे में कोयले की अंगीठी जलाकर नहीं सोना चाहिये। इससे कमरे में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जो प्राणघातक है। इस तरह की अनेकों प्राणघातक घटनाएं घटित भी हो जाती हैं। हम सर्दियों के दिनों में अगर कोयले की अंगीठी कमरे में जलाकर रखें, तो कमरे के खिड़की-दरवाजे खुले रखें या रात्रि में सोते समय अंगीठी को बाहर रख दें।

सूर्य किरण और वायु-

बन्द कमरे में वायु प्रदूषित हो जाती है, जिससे अनेक जीवाणु एवं मच्छर पनप जाते हैं, जो हमारे लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं। ऐसी स्थिति में सभी खिड़की-दरवाजे खोल देने चाहिएं, जिससे ताजी हवा अन्दर जा सके और वहां का वातावरण एवं वायु शुद्ध हो सके।
सूर्य की किरणें वायु को शुद्ध करने में अहम भूमिका निभाती हैं। प्रातः सूर्याेदय के समय में वायु पूर्णतः शुद्ध होती है। अतः खुले वातावरण में नंगे बदन बैठना चाहिए और गहरी-गहरी श्वास लेनी चाहिए। योगासन एवं प्राणायाम करना चाहिए, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है। सूर्य की किरणों में विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में होती है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक हैं। सुबह नंगे बदन सूर्य की किरणों में बैठने से विटामिन डी की पूर्ति होती है और सूर्य की किरणों से वायु शुद्ध होती है, जिससे हमारे फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजनयुक्त वायु मिलती है और हमारा शरीर अनेक रोगों से मुक्त होता है।
सप्ताह में एक बार अपने लेटने वाले बिस्तरों को धूप में अवश्य डालना चाहिए जिससे उन बिस्तरों की महक मिट जाये तथा अनेक घातक जीवाणु नष्ट हो जायें।

अग्नि से वायु शुद्धिकरण-

अग्नि भी वायु को शुद्ध करने का महत्त्वपूर्ण साधन है। इससे अनेकों रोगों के वैक्टीरिया नष्ट होते हैं। सीलन युक्त कमरे में अगर कुछ समय के लिए अग्नि जला दी जाय और उसमें कुछ हविष्यान्न डाले जायें, तो उस धुयें से पूरा कमरा शुद्ध हो जाता है।

ऑक्सीजन के स्त्रोत पेड़-पौधे-

अपने घरों में गमलों में विभिन्न पौधे लगाएं, जिससे वायु शुद्ध हो सके। ध्यान रहे कि गमले वाले पौधे दिन में ही कमरे के अन्दर रखें। रात्रि में उन्हें बाहर रख दें, क्योंकि प्रकाश की अनुपस्थिति में पेड़ कार्बनडाईऑक्साइड गैस बनाने लगते हैं, जो मानव जीवन के लिए नुकसानदायक है।
घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगायें, इससे वायु बहुत ही शुद्ध होती है। अनेक रोगों के वैक्टीरिया अपने आप नष्ट होते हैं। पीपल का पेड़ दिन एवं रात्रि में भी ऑक्सीजन ही देता है तथा दिन-रात वायु को शुद्ध करता है। अन्य पौधे दिन में प्रकाश की उपस्थिति में ऑक्सीजन देते हैं और रात्रि में प्रकाश की अनुपस्थिति में कार्बनडाईऑक्साइड देते हैं। इसलिए रात्रि में पेड़ों के नीचे लेटने के लिए मना किया जाता है।

वायुमंडल की शुद्धि यज्ञ से-

आधुनिक चिकित्सकों को तो 80-90 वर्ष से ही इस बात का ज्ञान हुआ है कि दूषित वायु में अनेक रोगों के वैक्टीरिया भ्रमण करते हैं। परन्तु, हमारे वेदों में पहले ही रोग उत्पत्ति करने वाले विषैले जीवाणु, को नष्ट करने के लिए अग्निहोत्र करने के लिए लिखा है। वायुमंडल की शुद्धि में यज्ञ कार्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यज्ञ से निकला हुआ धुआं प्रदूषित वायु को शुद्ध करता है और वातावरण शुद्ध होता है। अनेक रोगों के जीवाणु नष्ट होते हैं और हमारा जीवन रोगरहित बनता है।

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