जल तत्त्व चिकित्सा
एक कहावत है कि जल ही जीवन है। यह बात सही भी है,
क्योंकि शरीर में लगभग 76 प्रतिशत तक जल होता है,
जो रक्त के निर्माण एवं विभिन्न अंगों की क्रिया को गति
देता है। हमारे द्वारा लिए गये आहार के विभिन्न तत्त्वों को रस के रूप में
परिवर्तित करने में जल की अहम भूमिका है। जल के बिना रक्त का निर्माण और रक्त के
बिना शरीर का निर्माण रुक जायेगा। जल शरीर के तापमान को सन्तुलित रखता है। शारीरिक
कसरत करने से या वातावरण में गर्मी बढ़ने पर शरीर से पसीना के रूप में जल निकलकर
शरीर के तापमान को सन्तुलित करता है। जल शरीर में सफाई का भी कार्य करता है। दूषित
पदार्थ जो मल, मूत्र,
एवं पसीने के रूप में निकलता रहता हैं।
जल से शरीर का सन्तुलन-
जल के उपयोग से गुर्दों की कार्यप्रणाली सुचारु रूप से चलती
रहती है। वृक्क (गुर्दे) रक्त को शुद्ध करते हैं एवं दूषित पदार्थ पेशाब के माध्यम
से शरीर के बाहर करते हैं। जल के भरपूर उपयोग से यकृत वसा का उपापचय प्रक्रिया
द्वारा ऊर्जा में परिवर्तित करने का अपना कार्य सन्तुलित तरीके से कर पाता है जिससे
शरीर में सन्तुलन बना रहता है। मोटापा बढ़ने की प्रक्रिया सन्तुलित रहती है। जल कम
पीने से यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है और शरीर में स्थूलता बढ़ने लगती है। शरीर
मोटा होने लगता है। जल कम पीने से भोजन की पाचन क्रिया में अवरोध लगता है। पाचक
रसों की उत्पत्ति कम होती है और पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। पानी के अभाव में
आहार पेट में एक जगह एकत्र हो जाता है और कब्ज की शिकायत प्रारम्भ हो जाती है। गैस
बनना, खट्टी डकारें आना,
गले में जलन, पेट दर्द आदि अनेकों उपद्रव उत्पन्न होने लगते हैं।
गर्मियों में जल का अधिक उपयोग-
गर्मियों में बड़े रोग जैसे बवासीर,
जोड़ों में दर्द, स्थायी कोष्ठबद्धता,
शरीर की नसों एवं मांसपेसियों में खिंचाव,
उच्च रक्तचाप होने का खतरा बढ़ जाता है। शीत ऋतु की अपेक्षा
ग्रीष्म ऋतु में मनुष्य को ज्यादा जल पीने की आवश्यकता पड़ती है। ग्रीष्म ऋतु में
वातावरण अधिक गरम होने की वजह से शरीर से जल का निष्कासन पसीने के द्वारा अधिक
होता है। इसलिए गर्मियों में हमें ज्यादा से ज्यादा जल पीना चाहिये और शरीर में
पानी की कमी नहीं रहने देना चाहिये।
बच्चों को पानी जरूर पिलायें-
मातायें बच्चों को बचपन में पानी कम पिलाती हैं,
जिससे बच्चा बेचैन रहता है,
उसका खेलने में मन नहीं लगता है तथा वह चिड़चिड़ा बन जाता है
और उसमें रोने की आदत बन जाती है। बच्चों के दंत निकलते समय अतिसार होने या वमन
होने पर शरीर से जल की पर्याप्त मात्रा निकल जाती है। डाक्टर ग्लूकोज के माध्यम से
खून में जल की मात्रा बढ़ाते हैं। इसलिए मातायें ध्यान रखें कि बच्चों को हर एक या
दो घण्टे में पानी जरूर पिलायें, जिससे बच्चा स्वस्थ एवं सुन्दर बना रहे।
पानी का उपयोग ही लू से बचाव-
शारीरिक श्रम करने वाले मनुष्यों के शरीर से पसीने के रूप
में जल ज्यादा निष्कासित होता है। अतः ध्यान रहे कि जल हमें ज्यादा से ज्यादा पीना
चाहिये, जिससे शरीर स्वस्थ
एवं तन्दुरुस्त रह सके। गर्मियों में अक्सर हमें लू लग जाती है। इसका मुख्य कारण
शरीर में जल की कमी होती है। जल की कमी होने पर शरीर में गर्मी की अधिकता हो जाती
है और हमें लू लग जाती है। अतः गर्मियों के दिनों में हमे पानी भरपूर पीना चाहिये।
जल से प्राकृतिक चिकित्सा-
प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार जल शरीर की लगभग
सभी प्रक्रियाओं में भागीदार रहता है और जल की कमी होने पर यह क्रियायें बाधित
होने लगती हैं तथा शरीर में बेचैनी बढ़ने लगती है अतः प्रत्येक मनुष्य को अधिक से
अधिक जल पीना चाहिये और भोजन के साथ सलाद के रूप में खीरा,
ककड़ी, चुकन्दर, मूली, गाजर, नीबू, सन्तरा आदि का सेवन भी अधिकता से करना चाहिये। हम चाय कॉफी
और गर्म मसालेयुक्त स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ तो अधिक खाते हैं,
परन्तु पानी कम पीते हैं। इससे शरीर में अम्लीय पदार्थों की
अधिकता हो जाती है और गले, पेट, गुदा द्वार और मूत्र द्वार में जलन होने लगती है। इसलिए
पानी का अधिक सेवन करना चाहिये। जिससे इस तरह की परेशानियां न आयें और जल्दी ही इस
तरह के दूषित पदार्थ मूत्र मार्ग से निकल सकें।
स्नान के गुणकारी प्रभाव-
स्वास्थ्य और आध्यात्मिक दृष्टि से प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त
या सूर्याेदय के पहले स्नान करना बहुत ही लाभकारी है। सुबह-सवेरे लगभग सभी प्रदूषण
कम रहते हैं और रात्रि में शरीर पूरी तरह से आराम कर चुका होता है। प्रातः स्नान
से शरीर पर लगी धूल-मिट्टी, पसीने के अंश व शरीर में चिपके अनेक जीवाणु निकल जाते हैं।
स्नान करने से शरीर का हल्का व्यायाम भी हो जाता है और फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन
मिल जाती है, जिससे रक्त शुद्ध
होता है। इसके साथ-साथ शरीर के रोमकूप खुल जाते हैं और शरीर के अन्दर एकत्रित
दूषित तत्त्व निकल जाते हैं। शरीर में स्फूर्ति आती है और मन प्रसन्न होता है। जब
कि स्नान न करने से शरीर से पसीना आदि दूषित तत्त्व न निकलने के कारण त्वचागत अनेक
रोग उत्पन्न होते हैं, शरीर की मांसपेशियां संकुचित होने लगती है,
दिन में आलस्य व्याप्त रहता है और काम करने का मन नहीं
होता।
नोट-शरीरगत अनेक रोग पानी की कमी से उठ खडे़ होते हैं। जो
व्यक्ति खाना भरपूर खाता है और पानी कम पीता है,
उसे 40 वर्ष की उम्र के बाद जोड़ों का दर्द होने लगता है। पानी कम
पीने से पथरी बनने की सम्भावना ज्यादा रहती है। इसके अलावा स्त्रियों में पेट का
दर्द, प्रदर,
जोड़ों का दर्द, सरदर्द, चक्कर आना आदि अनेक रोग होते हैं। इसी प्रकार पुरुषों के
अनेक रोग भी पानी की कमी से होते हैं। इसलिए पानी को भरपूर मात्रा में पीना
चाहिये। ध्यान रहे कि पानी साफ-सुथरा एवं शुद्ध ही पियें। दूषित जल नुकसान
पहुंचाता है।
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