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स्वस्थ शरीर का राज अल्पआहार

Swasth sharir k raj alpahar

स्वस्थ शरीर का राज अल्पआहार, Swasth sharir k raj alpahar

अल्प आहार का मतलब भूखे पेट रहना नहीं है, अल्पआहार का मतलब आवश्यकता के अनुसार शरीर को भोजन देना है न कि पेट में भूसे की तरह आहार को भरना है। जीभ के स्वाद के अनुसार जब हम आहार लेना प्रारम्भ करते हैं तभी हमारा शरीर अनेक बीमारियों से ग्रसित होता है।

अगर हम पशु-पक्षियों को देखें तो पायेंगे कि वे अपनी प्रकृति के अनुसार भोजन करके हमेशा स्वस्थ रहते हैं। जिह्वा के स्वाद के अनुसार ऊल-जलूल खाना नहीं खाते हैं। जितनी भोजन की उनके शरीर को आवश्यकता होती है उतना ही खाते हैं, उससे ज्यादा नहीं। यही कारण है कि सदा वे स्वस्थ एवं सुखी रहते हैं। इसके विपरीत मनुष्य को स्वादिष्ट भोजन मिलने पर आवश्कता से अधिक पेट में ठूस लेता है, चाहे उसका परिणाम बाद में विपरीत निकले।

भोजन में असन्तुलन और शारीरिक श्रम के अभाव का ही परिणाम है कि मनुष्य अनेक घातकरोगों से ग्रसित हो रहा है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गाठिया, मोटापा, कैंसर, जैसी घातक बीमारियों की मार झेल रहा है।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार भोजन दो तरह का होता है प्रथम क्षारीय भोजन एवं दूसरा अम्लीय भोजन।
शाक सब्जियां, फल, दूध आदि भोजन क्षारीय भोजन कहलाता है तथा मैदा से बने भोज्य पदार्थ, ज्यादा तले भुने भोज्य अम्लीय भोजन कहलाते हैं। इसके अलावा तीसरी तरह का भोजन मांस, अंडा आदि कहलाता है, जो मानव के लिए त्याज्य भोजन है इसको कभी भी नहीं खाना चाहिए। 

प्रकृतिसत्ता ने मानव को शाकाहार के लिए सारी व्यवस्थायें दी है। अतः मानव को मानव बने रहने के लिए शाकाहार ही उपयुक्त आहार है। मांसाहार तो मानव को दानव बनाता है। इसलिए कभी भी मानव को मांसाहार नहीं करना चाहिये। मनुष्य को क्षारीय भोजन 75 प्रतिशत एवं अम्लीय भोजन 25 प्रतिशत लेना चाहिये। इससे शरीर स्वस्थ रहता है।

आयुर्वेद के अनुसार आहार की तीन श्रेणियां मानी गई हैं प्रथम सात्त्विक आहार, द्वितीय राजसिक आहार और तृतीय तामसिक आहार।

प्रथम सात्त्विक आहार- हरी सब्जियां, दालें, दूध, दही, मक्खन, घी, चावल आदि आते हैं।

द्वितीय राजसिक आहार- गरिष्ठ पकवान पूड़ी, उड़द, तेल मिर्च मसाले आदि आते हैं।

तृतीय तामसिक आहार- मिठाइयां मैदे से बने व्यंजन, समोसे, ज्यदा तली चीजें, अधिक चिकनाई युक्त खाद्य, बासी खाना, आदि है जो अनेक रोगों को निमन्त्रण देते हैं। इन सब की अधिकता ही रोगों की जननी है। अपनी प्रकृति के अनुसार हल्का खाना ही हमारे लिए उचित आहार है।

रोगमुक्त रहने के लिए मनुष्य को अपने पेट को चार भागों में विभक्त करके मानना चाहिये और उसी के अनुसार भोजन करना चाहिये। मनुष्य अपने पेट में दो भाग भोजन, एक भाग जल और एक भाग वायु संचार के लिए छोड़े। इन नियमों के अनुसार चलने वाला मनुष्य ज्यादा समय तक स्वस्थ एवं सुखी रहता है।
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