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चाइल्ड केयर

नवजात शिशु की परेशानियां-

नवजात शिशु जन्म के समय बहुत ही कोमल होता हैं। उसका आमाशय उसके शरीर के अनुसार ही छोटा होता है। वह थोड़ा ही दूध पी सकता है। उसके द्वारा पिया हुआ दूध एक घंटे में पच जाता है और पुनः उसे भूख लग आती है। वह रोकर अपनी बात बतता है कि उसे भूख लगी है।

नवजात शिशु को लगभग 5 महीने तक हर घंटे मां का दूध मिलना चाहिये। या मां के दूध के अभाव में गाय का दूध दिया जा सकता है। क्योंकि बच्चे की पाचनशक्ति कमजोर होती है इसलिए उसे अन्य दूध पचाने में परेशानी होती है।

नवजात शिशु के हरे पीले दस्त-

नवजात शिशु का आमाशय बहुत ही छोटा हैं। इस कारण से वह ज्यादा दूध पचा नहीं पाता हैं। और जब बच्चा बार-बार मां का दूध पान करता है तो पेट में गैस बनती है, दर्द होता है और पतले दस्त बार-बार होते है। इससे बच्चा कमजोर होने लगता है और उसमें चिड़चिड़ापन आने लगता है, पेटदर्द से वह रोता है। इससे बचने के लिए हम यहां पर कुछ घरेलू नुस्खे लिख रहे है।

(1) बच्चो की घुट्टी-अक्सर बुजुर्ग महिलायें नवजात शिशु को घुट्टी के रूप में छुहारा, जायफल और चार दाना अजवाईन को मां के दूध में घिसकर देती है। इसके बच्चे का सर्दी-जुखाम, पेट में गैस बनना, पेटदर्द दूर होता है और उसकी पाचनक्रिया सही होती है। सर्दियों में एक पत्ती केसर की डालकर बच्चे को दे, इससे बच्चा स्वस्थ और सुन्दर बनता है।
(2) बटी- किसी अच्छे आयुर्वेदिक कम्पनी की दन्तोदभेद गदान्तक रस या बालरोगान्तक रस की एक गोली को मां के दूध या गाय के दूध या शहद के साथ पीसकर सुबह-शाम देने से बच्चे के हरे-पीले दस्त, सूखा रोग, निमोनिया, डब्बारोग, पेट की गैस, दर्द सही होता है। या ये कहें कि नवजात शिशु की अधिकांश परेशानी दूर होती है।

नोट- ऊपर दो दवाये लिखी है, इनमें से किसी एक दवा का ही सेवन करना है।

बच्चों के दांत निकलते समय-

नवजात शिशुओं के दांत पांच महीने के बाद निकलने लगते है। दांत निकलते समय मसूढ़ो में सूजन, खुजली और दर्द होता है। जिससे बच्चा उलझन करता है, रोता है, अच्छे से खेलता नहीं हैं। उसका सिर गरम रहता है, वह लार ज्यादा गिरता है, उसे सर्दी जुखाम हो जाती है, वह दूध पीने से मना करता है। ऐसी परिस्थिति में बच्चों की ज्यादा केयर की आवश्यकता होती है।

01.  बच्चों को पतली और मुलायम गाजर हाथ में दें वह मुह में डालकर उसे मसूढों से दबायेगा। इससे उसे दर्द से राहत मिलेगी और धीरे-धीरे गाजर का कुछ रस पेट में जायेगा वह भी फायदा करेगा।
02. बच्चे को अंगूर का रस पिलाना चाहिये इससे भी दांत आसानी से निकलते है।
03. बंसलोचन का चूर्ण शहद के साथ चटाने से भी दांत सरलता से निकलते है।
04. ग्राइपवाटर किसी अच्छी आयुर्वेदिक कंम्पनी का पिलाना चाहिये इससे भी दांत आसानी से निकलते है।
05. तुलसी के रस में शहद डालकर बच्चें को चटाना चाहिये इससे भी दांत आसानी से निकलते है।
06 ज्यादा दस्त लगने की स्थिति में व्त्ै का घोल पिलाये, या घर पर ही व्त्ै का घोल इस प्रकार बनायें। 10 चम्मच चीनी, 1 चम्मच नमक को एक लीटर पानी में घोलकर बच्चे को थोड़ा- थोड़ा पिलाये, इससे शरीर में पानी की मात्रा कम नही होती है।

नवजात शिशु का आहार-

बच्चें बहुत ही नाजुक होते है। उनका आहार बहुत ही कोमल और जल्दी पचने वाला तथा पौष्टिक होना चाहिये। उनके खाने में प्रोटीन, आयरन, कैल्सियम, विटामिन्स और मिनरल्स युक्त आहार होना चाहिये। जब बच्चे छः महीने के ऊपर हो जाये तो मां के दूध के साथ ही कुछ पौष्टिक फल और आहार भी उसे देने चाहिये।
पका केला मसलकर बच्चे को खिलाना चाहियें।
दाल का पानी कम मात्रा में पिलाना चाहियें।
मूंग की दाल की खिचड़ी को दें
उबले सेव का पेस्ट बनाकर खिलायें, इससे रक्त शुद्ध होता है और भूख खुलकर लगती है।
संतरे या अंगूर का रस पिला सकते है।
बच्चें की भूख को बढ़ायें-
ताजे लीची के रस का सेवन बच्चों की भूख को बढ़ाता हैं।
अजवायन के चूर्ण में कालानमक मिला कर खिलाने से गैस बनना बंद होकर भूख खुलकर लगती है।
सेव का जूस या सेव के गूदे के पेस्ट में थोड़ा कालानमक मिलाकर खिलाने से भूख खुलकर लगती है और रक्त शुद्ध होता है।

बच्चों का सूखा रोग-

1 बंगला पान, देशी कत्था, प्याज का रस, भैंसा(पडवा) के गोबर का रस, इन चारो को मिला कर बच्चे की पीठ में दस मिनट तक हल्के हाथ से मालिस करें। पीठ में बहुत बारीक सफेद कीडे़ निकल आयेगें उन्हें पानी से गीले कपड़े से पांेछ दें, पुनः तीन दिन बाद यही क्रिया दोहराये। इस प्रकार दो या तीन बार मे ही सूखा रोग सही होता हैं।
2 दन्तोदभेद गदान्तक रस या बालरोगान्तक रस, इन दोनो में से कोई एक रस की एक गोली सुबह और एक गोली रात्रि में गाय के दूध से या शहद से बच्चे को दें। कुछ दिन इसके सेवन से भी सुखा रोग सही होता हैं।
बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायें
हमारे शरीर की विशिष्ट शक्ति जो शरीर में फैल रहे रोगों की शक्ति को घटाती है आयुर्वेद उसे रोगप्रतिरोधक शक्ति कहता है। यही रोग प्रतिरोधक क्षमता जब शरीर में घट जाती है, तो शरीर में अनेक तरह के रोग अपना डेरा जमा लेते हैं। आयुर्वेद में बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढा़ने के लिए अनेक उपाय बताये गये है।

स्तनपान

नवजात शिशुओं के लिए स्तनपान अति आवश्यक है। बच्चे को जन्म के समय से ही माता का दूध पिलाना चाहिए। माता के दूध में बच्चे के लिए उपयोग सभी आवश्यक पोषकतत्व होते हैं, जो बच्चे के शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है। बच्चे के जन्म से लेकर 6 माह तक माता का दूध ही पिलाना चाहिए। इसके अलावा किसी भी आहार की आवश्यकता नहीं होती है। 6 महीने से 1 वर्ष तक माता का दूध एवं अन्य पोषक आहार दे सकते हैं। माता का दूध बच्चों को पूर्ण स्वस्थ एवं निरोगी बनाता है। बच्चों की रोगप्रतिरोधक क्षमता को जाग्रत करता है।

आहार-विहार

बच्चों का आहार संतुलित एवं पौष्टिक होना चाहिए। भोजन में हरी सब्जी, फलों का रस, गाय का दूध, दालें आदि दें, जिससे शरीर को जरूरी मिनरल्स, विटामिन्स, कार्बाेहाइड्रेड, वसा आदि मिल सके और शिशुओं का शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं निरोगी बन सके।

शुद्ध वायु, जल, धूप का उपयोग

सुबह खुले आकाश के नीचे बच्चे को टहलाना चाहिए, जिससे शुद्ध वायु के साथ भरपूर ऑक्सीजन भी बच्चों को मिल सके और उनका रक्त शुद्ध हो सके। बच्चों को जल साफ एवं फिल्टर किया हुआ पिलाना चाहिए। क्योंकि दूषित जल के साथ अनेक रोगों के विषाणु उनके शरीर में प्रवेश कर उनको नुकसान पहुंचा सकते हैं। सुबह बच्चे को सैर को कराने से उसके शरीर में सूर्य की नारंगी किरणें पड़ती हैं और इससे विटामिन डी की प्राप्ति होती है। ये नारंगी किरणें अनेक विषाणुओ को नष्ट करने वाली होती हैं।

बच्चों के लिए अमृत तुल्य है मां का दूध

दुनिया में बच्चे के लिए माँ के दूध से बढ़कर कोई पूरक आहार नहीं है। जो बच्चे को पूर्ण पोषण प्रदान करता है। इस बात को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है। बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद माँ का दूध ही पिलाना चाहिये क्योंकि नवजात बच्चे में रोगों से लडऩे की क्षमता बहुत कमजोर होती है। उस कमी को माँ का दूध पूरा करता है। माँ के दूध में अधिकांश खनिज विटामिन, प्रोटीन मिनरल्स, आयरन और पोषक तत्व पाये जाते हैं तथा एक खास तत्व लैक्टोफोर्मिन भी पाया जाता है, जो बच्चे की आंत में पहुंच कर लौहतत्व को स्थापित करता है। माँ के दूध से आये अच्छे जीवाणु वहां पनपते हैं जो बाहर से आये किसी रोगाणु से लड़ कर उसे समाप्त कर देते हैं और शिशु की रक्षा होती है।

कुछ लोगों में यह धारणा है कि जन्म के बाद दो-तीन दिन तक माँ का दूध नहीं पिलाना चाहिये, जबकि बच्चे की नार्मल डिलिवरी के आधा घण्टे बाद तथा सिजेरियन डिलेवरी हो तो दो घंटे बाद बच्चे को पिलाने की कोशिश कर देनी चाहिये। बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद माँ के स्तनों से गाढ़े पीले कलर का दूध निकलता है, जिसे कोलिष्ट्रम कहते हैं। यह बच्चे के लिए बहुत फायदेमन्द रहता है। इस दूध में प्रचुर मात्रा में अनेकों विटामिन्स, प्रोटीन्स, एनर्जी तथा प्रोटैक्टिव एंटी बाडीज होते हैं जो बच्चे को अनेकों बीमारियों से बचाते हैं तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करते हैं।

जो बच्चे जन्म के बाद से छह महीने तक माँ का दूध ही पीते हैं उन्हें पूर्ण आहार माँ के दूध से ही मिल जाता है। जिससे उनके शारीरिक विकास में पूर्ण सहयोग मिलता है और बच्चा पूर्ण स्वस्थ एवं तन्दुरुस्त रहता है। इससे माँ और बच्चे में पूर्ण भावनात्मक सम्बन्ध भी प्रगाढ़ होता है और माँ की प्रेग्रेन्सी के दौरान बढ़ी हुई अतिरिक्त फैट भी घट कर सन्तुलित हो जाती है तथा डिलवरी के बाद होने वाली ब्लीडिंग भी कम होती है व यूट्रस भी अपने वास्तविक आकार में आ जाता है।

आज के आधुनिक फैशन के युग में महिलायें अपनी सुन्दरता खराब नहीं करना चाहती हैं और बच्चों को स्तनपान बहुत कम ही करवाती हैं, जिससे बच्चे को डिब्बा बंद पाउडर का दूध या मार्केट में उपलब्ध दूध ही मिल पाता है। इस कारण बच्चे को पूर्ण पोषकता नहीं मिल पाती है और उसका शारीरिक विकास रुक जाता है, रोगो से लडऩे की क्षमता कम हो जाती है तथा दूसरे बच्चों की अपेक्षा उनकी बुद्धि का विकास कम होता है। उनकी पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। डायबिटीज आदि अनेक रोग उन्हें जल्दी पकड़ते हैं। इसलिए माँ को चाहिये कि अपने बच्चे की ठीक तरह से परवरिश करें, उन्हें बचपन में दूध अवश्य पिलायें।

गुणों की खान है माता का दूध

जिन नवजात शिशुओं को माँ का दूध लगातार एक वर्ष तक पिलाया जाता है, उन्हें निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैः
1. माँ के दूध में अमीनो ग्लोब्युमिन पाया जाता है, जो बच्चों को पीलिया और दस्तों से सुरक्षित रखने में सहायता करता है। साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
2.माँ के दूध में एमाईलेज और लाईपेज पाया जाता है, जो बच्चों की पाचनक्रिया को सामान्य बनाये रखने में सहायक है।
3.माँ के दूध में पाया जाने वाला मिल्क लैक्टोज बच्चों को फंगल इन्फैक्शन तथा अग्नाशय के रोगों से सुरक्षित रखने में सहायता करता है।
4.माँ के दूध में एक विशेष प्रकार की चर्बी पाई जाती है, जो बच्चों को हृदय रोग से बचाने में मददगार होती है।
5. माँ के दूध में अनेकों तरह के विटामिन्स, मिनरल एवं रसायन पाये जाते हैं, जो बच्चों के अन्दर रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करते हैं, जिससे उनमें सामान्य बच्चों की अपेक्षा मृत्युदर की सम्भावना दस गुना कम हो जाती है।
6. माँ के दूध में आयरन, फास्फोरस एवं कैल्शियम की मात्रा पर्याप्त होती है, जो बच्चों की हड्डियों को ज्यादा मजबूत बनाने में सहायक है।
7. अन्यों की अपेक्षा माँ का दूध हल्का एवं रोग पैदा करने वाले कीटाणुओं से रहित होता है, जिसे बच्चे जल्दी पचाते हैं। माँ का दूध पीने वाले बच्चे ज्यादा सुन्दर एवं बलशाली बनते हैं।
माँ के दूध में इतनी सारी विशेषताएं होने की वजह से प्रत्येक माँ को अपने बच्चे को दूध अवश्य पिलाना चाहिए। इससे माँ और बच्चे के बीच मानसिक रिश्ता भी प्रगाढ़ होता है। माँ और बच्चे के बीच प्यार बढ़ता है।

बच्चों का स्वास्थ्य और फास्टफूड

बच्चे नाजुक एवं नासमझ होते हैं। आजकल के आधुनिक चमक-दमक वाले फास्टफूड, जंकफूड तथा डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ बच्चों को अपनी ओर ज्यादा आकर्षित करते हैं। बच्चे इन्हें ज्यादा चाव से खाते हैं।
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से फास्टफूड में तय मानक से ज्यादा चीनी व नमक पर नियंत्रण करने को कहा है, क्योंकि ज्यादा नमक व चीनी उच्च रक्तचाप और मोटापा बढ़ाने वाला है।
डब्ल्यूएचओ ने एक वयस्क के लिए प्रतिदिन 10 ग्राम नमक की मात्रा तय की है, जबकि इन जंकफूड, फास्टफूड की वजह से एक व्यक्ति 8 से 10 ग्राम तक नमक खा जाता है। ज्यादा नमक उच्च रक्तचाप के लिए जिम्मेदार है? तथा चीनी मोटापा बढ़ाने की जिम्मेदार है। क्योंकि इसमें ज्यादा कैलोरी होती है, इस कारण चयापचय की दर बदल रही है। इससे रक्तचाप भी बढ़ रहा है।

फास्टफूड में कुछ ऐसे तत्व हैं, जिनमें फैट उत्पन्न हो जाते है, जो हमारे शरीर में खराब कोलेस्ट्राल के स्तर को बढ़ाते है, जिससे वजन बढ़ने लगता है। आजकल हमारे देश में बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ती जा रही है। अगर बच्चों को फास्ट फूड खाने से नहीं रोका गया तो मोटापे की समस्या बढ़ती ही जायेगी। बच्चों में कम उम्र से ही डायबिटीज होने की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।

जंक फूड, फास्टफूड तथा बोतल बन्द पेय पदार्थों में बच्चों के शरीर के लिए आवश्यक पौष्टिक पदार्थ बहुत ही कम मात्रा में होते है। अगर हम चाहते हैं कि हमारा बच्चा पूर्ण चुस्त एवं निरोगी बने, तो हमें बच्चों को बचपन से ही ऐसे पौष्टिक खाद्य पदार्थ देने होंगे, जिसमें सभी विटामिन आहार के रूप मे हों। तभी हम स्वस्थ बच्चों एवं स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकेंगे।

बच्चों के विकास के लिये जरूरी है कैल्शियम

कैल्शियम एक महत्त्वपूर्ण मिनरल है, जो शारीरिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बच्चे के जन्म लेते ही उसके शरीर का विकास प्रारम्भ होजाता है। इन परिस्थितियों में उसके शरीर के लिए अतिरिक्त कैल्शियम की आवश्यकता होती है। पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम न मिलने से बच्चे की हड्डियों का विकास बाधित होता है और उसकी हड्डियों में लचीलापन आने का खतरा रहता है। इन परिस्थितियों में बच्चे को ‘बेरी-बेरी’ रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। कैल्शियम की पूर्ति से हड्डियां मजबूत बनती है और दांत ठोस एवं मजबूत रहते हैं तथा लम्बे समय तक हमारा साथ देते हैं। इसके अलावा शरीर की मांसपेशियों की मजबूती में भी कैल्शियम उपयोगी है।
कैल्शियम का सबसे बड़ा स्रोत दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थ हैं। अतः प्रतिदिन दूध का सेवन करना हमारे लिए बहुत ही उपयोगी है। बच्चों को प्रतिदिन 200 ग्राम दूध या उससे बने दही, पनीर, खोया आदि का उपयोग अवश्य करायें। इससे बच्चे के शरीर का विकास अच्छे से होता है। परन्तु, आजकल हम जिस दूध का सेवन कर रहे हैं, वह शुद्ध है या मिलावटी, इसका निर्धारण करना बहुत ही मुश्किल है। अतः पूरी कोशिश करें कि शुद्ध दूध का सेवन ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, अन्यथा मिलावटी दूध शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
दूध के अलावा भी अन्य ऐसे कई स्रोत हैं, जिनके माध्यम से हम कैल्शियम की पूति कर सकते हैं। सन्तरे के जूस में भी पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। पालक, शकरकन्द और बीन्स में भी कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में रहती है। इनके सेवन से भी कैल्शियम की पूर्ति की जा सकती है।

अतः आपके बच्चों के स्वास्थ्य एवं पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है कि हम उन्हें पूर्ण पौष्टिक एवं सुपाच्य आहार दें तथा शुद्ध दूध या दूध से बने पदार्थ और हरी सब्जियों का सेवन भरपूर मात्रा में करायें।

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