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श्वेतकुष्ठ (सफेददाग)

श्वेतकुष्ठ (सफेददाग), White spots of patches

जिस भी किसी व्यक्ति को सफेददाग हो जाते हैं, उसे समाज हेय दृष्टि से देखता है। यहां तक कि जिस बच्चे या बच्ची के सफेददाग होता है उसकी शादी तक रुक जाती है, जिससे मानसिक क्लेस होता है और समाज यह कहता है कि यह अपने बुरे कर्मो का फल भोग रहा है। कुछ हद तक यह बात सही भी है। परन्तु अगर रोग के विषय में सोचा जाये तो कोई भी रोग हो वह पीड़ादायक होता है और यहां तक मेरा मानना है कि कोई भी मनुष्य इन रोगों से बचा नहीं है, प्रत्येक मनुष्य को कोई न कोई रोग है ही। इससे यही सिद्ध होता है कि प्रत्येक मनुष्य अपने-अपने बुरे कर्मो के फलस्वरूप अलग-अलग रोगों के कष्टों को झेलता है। परन्तु, प्रकृतिसत्ता माता आदिशक्ति जगत जननी जगदम्बा जी ने इन रोगों से उबरने के रास्ते भी आयुर्वेद एवं अन्य अनेक विधाओं के माध्यम से बताये है, जिन्हें अपना कर हम इन कष्टदायक रोगों से मुक्ति पा सकते है।

सफेददाग क्या है ?

सफेददाग भी एक तरह का कुष्ठ ही है, इसमें कुष्ठ की तरह चमड़ा बिगड़ जाता है। इसमें चमड़ी सफेद पड़ जाती है। यह दो तरह का होता है- पहला सफेद एवं दूसरा लाल। परन्तु, दोनों पीड़ादायक हैं। गलित कुष्ठ और सफेद कुष्ठ में अन्तर यह है कि गलित कुष्ठ (कोढ़) टपकता है अर्थात् अंगों में गलन चालू हो जाती है, अंग गल-गल कर गिरने लगते हैं और सफेददाग में चमड़ी सफेद या लाल कलर की हो जाती है। कोढ़-वात पित्त और कफ तीनों दोषों के प्रकोप से होता है, परन्तु सफेददाग केवल एक दोष से होता है। कोढ़ रसादि समस्त धातुओं में रहता है पर सफेददाग रुधिर, मांस और मेद में रहता है, बस यही गलित कोढ़ और सफेद कोढ़ (सफेददाग) में अन्तर है। चरक, भाव प्रकाश आदि ग्रन्थों में अलग-अलग तरह से एक ही बात कही है कि वात जनित सफेददाग से पित्त जनित एवं पित्त जनित सफेददाग से कफ जनित सफेददाग भारी होता है। जो सफेददाग काले रोमों वाला, पतला, रुधिर युक्त और तत्काल का नया हो तथा आग से जलकर न हुआ हो, वह साध्य होता है। इसके सिवा सफेददाग असाध्य होता है।

खुजली, कोढ़, उपदंश, आतशक, भूतोन्माद, व्रण, ज्वर, हैजा, यक्ष्मा (टी.वी.) आंख दुखना, चेचक, जुकाम आदि छुतहे रोगों की श्रेणी में आते हैं। अतः ऐसे रोगियों के कपड़े, बिस्तर, खाने के बर्तन, मुख की सांस आदि से बचना चाहिए, नहीं तो रोग फैलने का खतरा रहता है और ऐसे रोगियों की चिकित्सा जल्दी ही करनी चाहिये जिससे यह रोग आगे न फैल सके। 

सफेद दाग निवारक नुस्खे 

1- पैर में मसलने की दवा

कड़वा ग्वारपाठा (कड़वी घृतकुमारी) के गूदा को पीतल या कांसे या स्टील की थाली में डालकर उसमें रोगी के दोनों पैर गूदे में घिसते हैं, जब तक कि रोगी के मुंह में कड़वापन न आ जाये। शुरू में 30 मिनट में मुंह कड़वा हो जाता है और बाद में कम समय में ही मुंह में कड़वापन आ जाता है। यह क्रिया प्रतिदिन दोनों समय लगातार कम से कम 90 दिन तक या अधिक दाग सही होने तक करनी है। इस क्रिया से खून की सफाई होती है और जो भी खाने व दागों मे लगाने की दवा दी जाती है वह जल्दी असर करती है। इसलिए सफेददाग के रोगी को यह दवा का उपयोग जरूर करना चाहिये।

2- सफेद दागों पर लगानें की दवा-

(अ) 100 ग्राम एल की जड़ की छाल, 100 ग्राम तेन्दू की जड़ की छाल, 30 ग्राम सफेद अकौवा (श्वेतार्क) के पत्ते की भस्म, 30 ग्राम देशी खैर को कूट-पीसकर महीन बारीक करें और 30 ग्राम बाबची के तेल में मिलाकर रख लें। सफेद दागों पर इसका गौमूत्र के साथ मिलाकर सुबह शाम लेप करें। यह लेप लगातार दाग सही होने तक धैर्य के साथ लगायें। इससे दाग निश्चय ही सही होते हैं, समय जरूर लगता है।

(ब) गुलाब के ताजे फूल 50 ग्राम, अनार के ताजे फूल 50 ग्राम तथा सफेद आक के पत्ते 10 नग, इन सबको गौमूत्र के साथ पीसकर इसमें बाबची का तेल 30 ग्राम मिलाकर रख लें। इस लेप को सफेद दागों पर प्रतिदिन दोनों समय लगायें, इससे भी सफेददाग चमड़ी के रंग के हो जाते हैं। यह दवा धैर्य के साथ दाग सही होने तक लगायें।

(स) मालकागनी को 21 दिन तक गौमूत्र में डुबाकर रखने के बाद उसका तेल निकाल लें। उसको प्रतिदिन दोनों समय सफेद दागों पर दाग सही होने तक लगायें, इससे भी सफेददाग सही होते है।   

3- सफेद दागों पर खाने की दवा-

(क) त्रिफला 50 ग्राम, बायबिरंग 50 ग्राम, स्वर्णक्षीरी की जड़ 20 ग्राम, मेंहदी के फूल या छाल 20 ग्राम, चित्रक 10 ग्राम, असन के फूल 50 ग्राम, अमरबेल 50 ग्राम, शुद्ध बाबची 50 ग्राम, इन सबको कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें और एक डिब्बे में रख लें। 3 ग्राम दवा को गौमूत्र अर्क 10 ग्राम के साथ रात को सोते समय प्रतिदिन कम से कम 180 दिन या रोग सही होने तक सेवन करें।

नोट-बाबची को शुद्ध करने के लिये उसके बीजों को गौमूत्र में सुबह भिगो दें। 24 घंटे बाद गौमूत्र बदल दें। गौमूत्र बदलने की यह क्रिया 6 दिन लगातार करें। फिर बाबची को गौमूत्र से निकाल कर धूप में सुखा लें। इससे बाबची पूर्णतः शुद्ध हो जाती है। इसे ही दवा बनाने के उपयोग में लें।

(ख) कालीमिर्च, सौंफ, असगंध, सतावर, सेमरमूसर ब्रह्मदण्डी, इन सभी को कूट-पीसकर इन सबके बराबर मिश्री मिलाकर डिब्बे में रख लें। तीन ग्राम दवा खाली पेट सुबह गाय के घी के साथ खायें और उसके 1 घंटे बाद तक कुछ न खायें। यह दवा रोग सही होने के एक महीने बाद तक खानी है। इससे खून शुद्ध होता है और सफेददाग वाली चमड़ी अपने ओरिजनल कलर में धीरे-धीरे आ जाती है।

(ग) असली मलयागिरी चन्दन बुरादा 50 ग्राम, चाँदी की भस्म 12 ग्राम, सफेद मूसली 100 ग्राम, कुंजामिश्री 100 ग्राम, छोटी इलायची 100 दाना, इन सभी को कुट-पीसकर एक डिब्बे में रख लें। 10 ग्राम दवा को 5 ग्राम गौमूत्र अर्क के साथ सुबह नास्ता के पहले एवं शाम को खाना खाने के बाद 120 दिन तक लगातार लें। साथ ही इस दवा के खाने के एक घंटे बाद खदिरारिष्ट तथा कुमारीआशव की चार-चार ढक्कन दोनों दवाओं को मिलाकर पीयें। इससे भी सफेददाग सही हो जाते है।

परहेज -

दवा सेवन समय तक प्रत्येक तरह का नमक पूर्णतः बन्द कर दें। इस रोग में नमक का परहेज आवश्यक है अगर हम दवा सेवन समय में नमक का सेवन करेंगे तो दवा का पूर्ण लाभ नहीं मिल पायेगा। साथ ही खटाई, तली चीजें, लाल मिर्च आदि का सेवन और मांसाहार एवं शराब पूर्णतः वर्जित है।

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