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हमारी दिनचर्या

Hamari dincharya


हमारी दिनचर्या

हमारे धर्मशास्त्रों ने आयुर्वेद को पांचवां वेद माना है। यह एक ऐसा वेद है, जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक है। इसमें विभिन्न विधियों के द्वारा शरीर को स्वस्थ रखने का ज्ञान दिया गया है। प्रथम, शरीर को स्वस्थ रखने हेतु एक व्यवस्थित दिनचर्या का विधान है, जिससे शरीर स्वस्थ एवं सुन्दर बना रहता है। अगर किसी कारणवश हमारी दिनचर्या अव्यवस्थित होती है, तो कुछ दिनों में शरीर रोगग्रस्त होने लगता है। आयुर्वेद में स्वस्थ व्यक्ति की दिनचर्या के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। प्रत्येक व्यक्ति को व्यवस्थित दिनचर्या अपनाने की जरूरत हैं। इससे शारीरिक एवं आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।

ब्रह्ममुहूर्त में शैयात्याग

स्वस्थ मनुष्य को अपने शरीर व आयु की रक्षा के लिए ब्राह्ममुहूर्त (रात्रि के अन्तिम प्रहर में जब रात्रि समाप्त होने में एक से दो घण्टे शेष रहते हैं।) में उठना चाहिए।

जल का पान

ब्रह्ममुहूर्त में शैया त्याग करने के पश्चात् जल से मुख साफ करें। आंखों में पानी के छींटे मारें तथा पानी से कुल्ला करें। तत्पश्चात् अपनी परिस्थिति के अनुसार समशीतोष्ण जल आधा लीटर से एक लीटर तक पियें। अगर सम्भव हो, तो रात्रि में किसी ताम्रपात्र में एक लीटर जल भरकर रखें एवं सुबह उसे ही पियें। इससे आपके बाल असमय नहीं पकेंगे तथा आंतों में रुका हुआ मल, मलाशय में पहुंच जाता है और कोष्ठ शुद्धि अच्छे से होगी। कब्ज अनेक बीमारियों को जन्म देने वाली है। प्रातःकाल जल सेवन, कब्ज को बनने से रोकता है। शरीर में लगभग 70 प्रतिशत से अधिक जल की मात्रा होती है। अगर जल की कमी शरीर में हो जाये तो अनेक परेशानियां निर्मित होने लगती हैं। प्रातःकाल जल सेवन से कई अन्य बीमारियों से भी बचा जा सकता है। जल सेवन के कुछ देर बाद पेशाब भी खुलकर आती है। इससे गुर्दों तथा मूत्राशय की सफाई भी अच्छी तरह से हो जाती है। शरीर में एकत्रित विजातीय पदार्थ निकल जाते हैं। इससे शरीर के निरोगी रहने में सहायता मिलती है।

हल्का व्यायाम व टहलना

जल पीने के पश्चात् हाथों को जंघाओं पर रखकर पन्द्रह से बीस बार पेट को ऊपर-नीचे करें और दस मिनट धीरे-धीरे टहलें। इससे हाजत खुलकर लगती है और पेट पूरी तरह से साफ हो जाता है।

मलत्याग

मल-मूत्रादि के वेग को रोकना नहीं चाहिए। यथा सम्भव जल्दी ही इन क्रियाओं से निवृत् होना चाहिए। मलत्याग के समय बाते नहीं करनी चाहिएं। ऊपर और नीचे के दांतों को आपस में सटाकर तथा मुख बन्दकर मल त्याग करने से दांत मजबूत होते हैं। मलत्याग और शौचादि कर्म करने के पश्चात् हाथों को मिट्टी या साबुन से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।

मुखशुद्धि

शौचादि कर्म पूर्ण करने के पश्चात् नीम की दातून या टूथब्रुश से दांतों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। जीभी से जीभ का मैल साफ करें। इससे मुख की दुर्गन्ध दूर होकर दांत मजबूत बने रहते हैं। दांतों से खून आना व दर्द की शिकायत दूर होती है।

प्रतिदिन स्नान

स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन ब्राह्ममुहूर्त में स्नान करना चाहिए। ग्रीष्मऋतु में शीतल जल से तथा शीतऋतु में हल्के गर्म जल से स्नान करना लाभदायक रहता है। आंखों में शीतलजल के छींटे मारने से आंखों की रोशनी स्थिर रहती है। भोजन के तुरन्त बाद स्नान न करें, इससे अग्निमाद्य होने की सम्भावना रहती है। जो पाचनक्रिया में बाधक है।
स्नान के बाद खुरदुरे तौलिया से शरीर को अच्छी तरह साफ करें। इससे शरीर के रोमकूप खुलते हैं, शरीर में चिपका मैल निकल जाता है। शरीर में खून का संचार तीव्रता से होता है और मन प्रसन्न हो उठता है।

इष्ट आराधना

प्रतिदिन स्नान के पश्चात् धुले वस्त्र पहनकर अपने पूजास्थल में किसी आसन पर बैठकर माता भगवती (जो सम्पूर्ण जगत् की जननी एवं पालनहार हैं तथा हमारी आत्मा की मूल जननी एवं इष्ट हैं) की आराधना करें, अगरबत्ती एवं दीपक प्रज्वलित करके, आरती एवं समर्पण स्तुति सम्पन्न करें।

प्राणायाम, ध्यान एवं योगसाधना

प्रातःकाल सूर्योदय के समय ग्रीष्म ऋतु में खुले आसमान के नीचे आसन बिछाकर प्राणायाम करें, गहरी श्वांस लें और कुछ समय रोककर उसे बाहर निकालें। प्राणायाम की सभी क्रियायें करें। कपालभाति और भस्रिका प्राणायाम करें। इसके पश्चात् योगासन की क्रियायें सम्पन्न करें। अन्त में शवासन में 15 मिनट लेटने के पश्चात् इन क्रमों को समाप्त करें।

आहार

सुबह हल्का एवं सुपाच्य स्वल्पाहार लें। ज्यादा तली, गरिष्ठ एवं बादी चीजों का सेवन न करें। सादा आहार ही ग्रहण करें। इससे शरीर स्वस्थ एवं निरोगी रहता है। दोपहर में सादा खाना खायें। इसी प्रकार रात्रि में भूख से कम खायें और सोते समय एक गिलास पानी पीकर अवश्य सोयें। इससे रात्रि में सोते समय बुरे स्वप्न नहीं आते हैं और नींद अच्छी आती है। मन प्रसन्न एवं शरीर स्वस्थ रहता है। मांसाहार का सेवन न करें। यह तन व मन को दूषित करता है।

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