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त्रिदोष

त्रिदोष -

आयुर्वेद के मतानुसार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उसमें त्रिदोष की कल्पना की गई हैं। आयुर्वेदिक मनीषियों का कहना हैं कि अगर शरीर को स्वस्थ रखना है तो शरीर गत त्रिदोषों को सम रहना जरूरी हैं और जब कभी इन त्रिदोषों में असमानता आ जाती है तो हमारा शरीर रोगों से पीडित हो जाता है। यह त्रिदोष हैं- वात, पित्त और कफ। इन सब का ज्ञान वैद्य समाज को होता था वे नाड़ी परीक्षण के माध्यम से पता लगा लेते थे कि अमुक रोगी का कौन सा दोष बढ़ा हुआ है और वे उसी के अनुसार उसकी चिकित्सा करते थे। दवा इतनी सटीक होती थी कि रोग जड़ से ठीक होता था।

वात- 
जब शरीर में बात की प्रधानता हो जाती है तो बात से सम्बन्धित परेशानियां या रोग खडे़ होने लगते हैं। वात प्रधान व्यक्तियों के शरीर के जोड़ो में दर्द, सूजन, जकड़न आदि हो जाती हैं जो असहनीय भी हो सकती है। नशों में खिचावट, शरीर में वायु का कही भी फंस जाता, वहां पर सूजन और दर्द होना आदि अनेक परेशानियां होने लगती हैं। तीनों दोषों में वात या वायु अधिक महत्वपूर्ण है। शास्त्रों में वायु को प्राण कहा गया है इसी वायु के साथ शरीर में प्राण और आक्सीजन प्रवेश करती है। इसके सम रहने पर शरीर स्वस्थ रहता है। जब कभी वात प्रकुपित होता है तो इससे लगभग 80 प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
इससे ही जुड़ा एक और रोग हैं जिसे हम वायु कहते हैं, वायु रोग भी 84 तरह का कहा गया है। वात और वायु रोगों की आयुर्वेद में इतनी विस्तृत विवेचना की गई है। इससे ही समझा जा सकता है कि आयुर्वेद चिकित्सा किसी रोग के निदान के लिए कितनी कारगर होगी। वात दोष का सबसे खतरनाक रोग कुलंगवात कहलाता है, यह रोग बहुत ही तकलीफ दायक हैं, इस रोग में पैर के कूल्हे से एडी तक असहनीय दर्द होता हैं, रोगी को चैन नहीं रहता है। इसी तरह का गठिया रोग है जो शरीर के प्रत्येक जोड़ को पकडता है, उन जोडों में सूजन आती है और वे बहुत ही दर्द करते हैं। हम यहां पर वात रोग को दूर करने से सम्बधित कुछ जानकारियां दे रहे है।

1 हरसिंगार के ताजे दस पत्ते लेकर 400 ग्राम पानी में डालकर धीमी आंच में पकायें। जब पानी पकते-पकते 200 ग्राम रह जाये तो उसे आग से उतार कर एक कपड़े से छानकर गिलास में रख लें, ये दवा का काढ़ा तैयार हो गया। इसकी चार खुराक बनायें। एक खुराक काढ़ा में आधा ग्राम सोंठ का चूर्ण डालकर सुबह नास्ता के बाद हल्का गरम-गरम पियें। दो दिन में ही जोडों के दर्द में आराम आने लगता हैं। इसके बाद भी इसी विधि से इस दवा का सेवन रोग दूर होने तक किया जा सकता है।

2 वायुगोला का दर्द भी वात या वायु के प्रकोप से होता है। जब किसी रोगी के पेट में गैस की वजह से दर्द हो तो सफेद फूल के अकौवा (स्वेतार्क) का एक फूल ताजा, अजवाइन का चूर्ण आधा ग्राम को लेकर उससे दो गुना गुड मिलाकर रोगी को खिलायें, पन्द्रह मिनट में रोगी का दर्द चला जाता है।

पित्त- 

शरीर में पित्त दोष की न्यूनता और अधिकता भी रोगों का कारण बनती है। पित्त दोष की अधिकता शरीर के ताप को बढ़ाती है। इससे शरीर में उत्पन्न होने वाले पाचकरस और हार्मोन्स अधिक बनते है जो दाह पैदा करते है और आमासय में जलन आदि उत्पन्न करते हैं। कम पित्त बनने से आमाशय का कार्य सुचारु रूप से नही चल पाता है। पाचनक्रिया देर से होती है। इसकी कमी से भूख कम लगना, खाया हुआ देर से पचना, पेट में गैस बनना आदि होता है। पित्त के सम अवस्था में रहने से आमाशय की पाचनक्रिया सुचारू रूप से चलती है। अन्न समय से पच जाता है और शरीर स्वस्थ रहता है।
आयुर्वेद के अनुसार पित्त को पांच प्रकार का माना गया है। हम यहां पर पित्त के प्रकोप को शान्त करने के लिए कुछ जानकारियां दे रहे है।

1. शतावर का चूर्ण 10 ग्राम में शहद 10 ग्राम मिलाकर सुबह खाली पेट लगातार 6 दिन खाने से पित्त दोष में आराम आने लगता है।

2. नीमगिलोय का तना चार अंगुल को 100 ग्राम पानी में पीसकर उसे छान लें और उसमें शहद 10 ग्राम मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से पित्त का प्रकोप शान्त होता है। पित्त से पीडित रोगी पानी ज्यादा पिये। शराब जैसे घातक नशे से दूर रहे, शराब और मांस का सेवन पित्त रोग को ज्यादा बढाता है।

3. शंखभस्म 1 ग्राम, आवला चूर्ण 1 ग्राम, सोंठ चूर्ण 1 ग्राम, गिलोय सत आधा ग्राम को शहद के साथ सुबह और रात्रि में सोते समय खाने से अम्लपित्त शांत होता है।

कफ- 

शरीर में कफ अनेक कार्यो को सम्पादित करता है। कफ चिकना, लिसलिसा, हड्डियों के समस्त जोड़ों में रहने वाला, शरीर के घावो को भरने वाला, रोगों के आक्रमण को रोकने वाला होता है। यह दोष शरीर के समस्त अंगों का पोषण करने वाला है। इसकी अधिकता से सर्दी, जुखाम, खांसी, बलगम अधिक बनना, मुंह का मीठा रहना, नींद अधिक आना, शरीर में भारीपन, सुस्ती, शीतलता, खुजली, मूत्र, पसीना, मल आदि में चिपचिपापन बढ़ जाना होता है। कफ के कम होने पर शरीर में सूखापन, हृदय, फेफडों और हड्डियों के जोडों में एक खालीपन महसूस होना, जोड़ों में दर्द, नींद की कमी, कमजोरी और अत्यधिक प्यास लगना जैसी समस्यायें उत्पन्न होती है।
यह सर्दी-जुकाम से बढ़ता हुआ खासी और स्वांस तक पहुंच जाता है। आज की स्थिति में स्वांस का पूर्ण इलाज सम्भंव नहीं है परन्तु कुछ वनस्पतियों के सेवन से इसे कन्ट्रोल रखा जा सकता है। जो हम यहां पर दे रहे हैं।

1. छोटी पीपरी 10 नग कच्ची और 10 नग भुनी हुई को पीसकर एक डिब्बी में रख लें। 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम खाने से सर्दी, जुकाम तीन दिन में सही होता है। आवश्यकता पड़ने पर एक या दो दिन और लिया जा सकता है।

2. सितोपलादि चूर्ण आधा ग्राम को शहद के साथ सुबह और शाम को लेने से दो या तीन दिन में सर्दी-जुकाम की शिकायत दूर होती है।

3. कालीमिर्च तीन नग के चूर्ण को प्रतिदिन पानी के साथ दो या तीन महीने लेने से सर्दी से सम्बन्धित किसी भी तरह की ऐलर्जी सही होती हैं और रोगी को बार-बार छींक आना या सर्दी होना सही होता है।

4. भूरीमिर्च तीन नग, अजवाइन एक ग्राम, हल्दी आधा ग्राम, छोटी पीपर आधा नग को पीसकर मुनक्का (दाख) 5 नग के साथ चबा-चबा कर खायें, ध्यान रहे इस दवा सेवन के आधा घंटा तक पानी न पियें, इससे छाती में जमा बलगम धीरे-धीरे निकल जाता है। यहा जो दवा लिखी हैं वह एक खुराक है, इसी अनुपात में 11 दिन के लिए बना लें, 11 दिन में शरीर से बलगम निकलकर खांसी में आराम आ जाता है।

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